इस आंदोलन को एक तरफ परदे के पीछे संघ प्रचारक एवं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महासचिव रहे चिंतक गोविंदाचार्य चला रहे थे, तो दूसरी ओर पर्दे पर "मैग्सेसे पुरस्कार" विजेता भारतीय राजस्व सेवा से इस्तीफा देकर आए नौकरशाह संयुक्त आयकर आयुक्त रहे अरविंद केजरीवाल चला रहे थे। आंदोलन के दौरान दिन प्रतिदिन अरविंद केजरीवाल मंच से दहाड़ मार कर बोलते थकते नहीं थे कि यह जो संसद है वह दागी है, क्योंकि उसमें 150 से ज्यादा सांसद दागी हैं, जिन पर भ्रष्टाचार और अपराधों के गंभीर आरोप है। असली संसद तो सामने खड़े लोग (जनता) हैं। अरविंद केजरीवाल की यह मांग रही थी कि जिन भी सांसदों पर अपराधिक अपराध और भ्रष्टाचार के प्रकरण चल रहे हैं, वे सब पहले संसद से इस्तीफा देकर न्यायालय में मुकदमा लड़ कर बाईज्जत बरी होकर आये। फिर जनता के बीच जाकर चुनाव लड़कर चुनकर संसद में आएं। यही सही स्वच्छ संसदीय लोकतंत्र होगा। याद कीजिए! जब अन्ना आंदोलन के प्रमुख कर्ता धर्ता अरविंद केजरीवाल ने संसदीय लोकतंत्र को अपराध व भ्रष्टाचार से मुक्त करने के उक्त मुद्दे को लेकर भ्रष्टाचार मुक्त और अपराधी/आरोपी विहीन संसद और विधानसभा की कल्पना को लेकर एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की बात कही, तब केजरीवाल के आंदोलनकारी गुरु भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के मुख्य चेहरा अन्ना हजारे ने राजनीतिक पार्टी बनाने से साफ इनकार कर दिया था। शायद अन्ना ने जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी संपूर्ण क्रांति के आंदोलन से सीख ली, जहां जेपी ने नई राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी बनाई तो जरूर, परंतु स्वयं उनने सत्ता में भागीदारी नहीं की।
この記事は Open Eye News の March 2024 版に掲載されています。
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