याद कीजिए, पिछले दस वर्षों में ऐसा कब हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे, वह भी जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में गए हों और देश में सुर्खियां ‘नीट’ परीक्षा में कथित धांधली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बेरुखी वगैरह उगल रही हों; गली-मोहल्ले, गांव-खेड़े में चर्चाएं बाहर से ज्यादा भाजपा और संघ परिवार के भीतर से उठ रही चुनौतियों की हो रही हों; हारे हुए भाजपा नेता खुलकर भितरघात के आरोप-प्रत्यारोपों में उलझे हों; विपक्ष लोकसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद पर मोर्चे खोल चुका हो; मुंबई में ईवीएम में मोबाइल से छेड़छाड़ के कथित आरोप की एफआइआर कोई मतगणना अधिकारी करा रहा हो? बेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तीसरी पारी की एनडीए सरकार में वित्त, रक्षा, गृह, विदेश मामले और वाणिज्य जैसे प्रमुख मंत्रालयों (सरकार की प्रभावी सत्ता का 85 प्रतिशत) को भाजपा के पाले में रखकर और पुराने मंत्रियों को ही गद्दी सौंपकर यह संदेश दिया कि सब कुछ वैसा ही चलेगा जैसा वे चाहते हैं, लेकिन तूफान के संकेत की तरह चुनौतियां नई-नई शक्ल में खुल रही हैं- सिर्फ सियासी नहीं, दूसरे मोर्चों पर भी। अशुभ योग भी दिख रहे हैं। सिर मुंड़ाते ही ओले की तरह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में रेल दुर्घटना आ गिरी, जिसमें प्रारंभिक खबरों के मुताबिक नौ लोग जान गंवा बैठे और यह रेल व्यवस्था में सुधार के दावों की पोल एक बार फिर खुलती लग रही है।
दरअसल जनादेश 2024 ही कड़ी और अप्रत्याशित चुनौतियों की राह खोलता है। ये चुनौतियां सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्ष इंडिया दोनों के दरवाजे पर खड़ी हैं, हालांकि सत्ता पक्ष के लिए ये बेशक मुश्किलजदा है। इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 543 सदस्यीय लोकसभा में 272 सीटों के साधारण बहुमत से पीछे रुक गई। उसे 240 सीटें ही मिलीं, जो जरूरी आधे आंकड़े से 32 कम हैं। इससे पहली बार मोदी की अगुआई वाली सरकार अपने 24 एनडीए सहयोगियों की बैसाखी पर टिकी है, जिन्हें 53 सीटें मिली हैं। लिहाजा, यह कई तरह की मजबूरियां, विरोधाभास और टकराव की संभावनाएं लिए हुए है। उन्हें संभालना आसान तो नहीं रहने वाला है।
この記事は Outlook Hindi の July 08, 2024 版に掲載されています。
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