कितना चटकेगा चंपाई रंग

छह महीने के भीतर तस्वीर इस कदर बदल जाएगी, शायद इसका एहसास खुद पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को भी नहीं रहा होगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सुप्रीमो शिबू सोरेन के खासमखास और पार्टी के पुराने सिपाही रहे चंपाई की राहें अब जुदा हो गई हैं। कोल्हान के टाइगर के रूप में चर्चित नेता के भाजपा में जाने से झारखंड में राजनैतिक सरगरमी बढ़ गई है। अगले एक-दो महीने में झारखंड में विधानसभा चुनाव होना है। फिलहाल उनके अकेले पाला बदलने से हेमंत सोरेन की अगुआई वाली सरकार और इंडिया गठबंधन को खास फर्क पड़ता नहीं दिखता है, लेकिन कोल्हान क्षेत्र में आदिवासी वोटों के बिखरने का खतरा हो सकता है। हालांकि 20 अगस्त को दिल्ली से खाली हाथ लौटे चंपाई ने नई पार्टी बनाने का संकेत दिया था। लेकिन आखिरकार 26 अगस्त की रात को असम के भाजपाई मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट करके जानकारी दी कि चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन 30 अगस्त को भाजपा में शामिल होंगे।
दरअसल 81 सदस्यीय विधानसभा वाले झारखंड में कोल्हान क्षेत्र में 14 सीटें हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। 14 सीटों में से 11 झामुमो, दो कांग्रेस और एक निर्दलीय ने जीती थी। यही नहीं, 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 सीटों में भाजपा को सिर्फ दो ही सीटें मिली थीं। इस साल 2024 के संसदीय चुनाव में तब और बड़ा झटका लगा, जब आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी पांच सीटों पर भाजपा को हार मिली। इससे आदिवासी वोटों को लेकर भाजपा में भारी बेचैनी है। अब चंपाई की बगावत के सहारे भाजपा स्थितियां बदलने के प्रयास में है।
चंपाई सरायकेला से 1991 में विधानसभा उपचुनाव बतौर निर्दलीय जीते थे। फिर, 1995 में झामुमो की टिकट पर जीते। 2000 में भाजपा लहर को छोड़कर वे लगातार छह बार जीते हैं। हाल में विवादास्पद मामले में हेमंत सोरेन को जब जेल जाना पड़ा तो मुख्यमंत्री की कुर्सी चंपाई को सौंपी गई थी। करीब पांच महीने बाद हेमंत हाइकोर्ट के आदेश से जब जेल से निकले, तो चंपाई को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। कहते हैं कि चंपाई इसी से आहत हुए और नए रास्ते की तलाश में जुट गए।
この記事は Outlook Hindi の September 16, 2024 版に掲載されています。
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