आस्था या दिखावा
Sarita|September First 2022
आस्था जब दिखावे की चीज बन जाती है तब न सिर्फ आप इसे भोग रहे होते हैं बल्कि दूसरों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है. आस्था ऐसी चीज होती है जिस में दूसरा व्यक्ति मरपिट रहा होता है जबकि आस्थावान को कोई फर्क ही नहीं पड़ता.
हरीश जायसवाल
आस्था या दिखावा

सुजय आज बहुत खुश था. खुश हो भी क्यों न, बात ही खुश होने की थी. माइनिंग इंजीनियरिंग से डिग्री लेने के बाद लगभग 2 साल तक इधरउधर टप्पे खाने के बाद उस ने छोटीमोटी नौकरी की और अलगअलग जगह बड़ी नौकरी के लिए आवेदन कर रहा था. उस की मेहनत रंग लाई और दोदो परीक्षाएं में सफल होने के बाद एक प्रसिद्ध सीमेंट फैक्ट्री में फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था.

यह सीमेंट फैक्ट्री देश की बड़ी फैक्ट्रियों में गिनी जाती थी. सब से बड़ी बात यह थी कि फैक्ट्री जिस इलाके में थी उसी इलाके में देवीजी का एक प्रसिद्ध मंदिर भी था. सुजय इस बात से भी खुश था कि चयन होने के बाद वह खाली समय में देवी दर्शन के लिए भी चला जाएगा.

इंटरव्यू का बुलावा भी उन्हीं 9 दिनों के बीच ही था जिन दिनों में देवीजी सब से ज्यादा पूजी जाती हैं और स्पष्टतया सुजय के लिए यह 'माता ने बुलाया' वाली स्थिति थी.

सुजय के गृहनगर से यह जगह लगभग 250 किलोमीटर दूर थी और वहां पहुंचने में लगभग 4 घंटे लगते हैं. सुजय को इंटरव्यू के लिए दोपहर एक बजे का समय दिया गया था. उस ने निश्चित किया कि वह सुबह 5 बजे चलने वाली ट्रेन से निकलेगा और 9 बजे तक वहां पहुंच जाएगा. नाश्ता वगैरह कर के 11 बजे तक फैक्ट्री पहुंच जाएगा.

निश्चित दिन निश्चित समय पर सुजय स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन का दृश्य विस्मित करने वाला था. प्लेटफॉर्म पर इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की जगह भी न थी. ट्रेन लगभग 30 मिनट देरी से आई. सुजय पर्याप्त समय ले कर निकला था, इसलिए इस देरी से उसे खास प्रभाव नहीं पड़ा. जैसेतैसे इस भीड़ में वह एक कोच में घुसने में कामयाब हो गया. इतनी भीड़ थी कि उसे खड़े होने में भी असुविधा हो रही थी. “अरे बाप रे, इतनी भीड़, सुजय डब्बे में घुसते ही बोला.

“अरे भैया, यह भीड़ नहीं, यह तो आस्था है," एक यात्री ने कहा.

“यह कैसी आस्था जिस में आप खुद तो परेशान हो ही रहे हैं, दूसरों को भी परेशान कर रहे हैं." सुजय बड़ी मुश्किल से अपने को एडजस्ट करता हुआ बोला.

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