उत्तर प्रदेश की जनता इस बात से खुश थी कि योगी राज में अपराधियों के खिलाफ कड़ाई से काम हो रहा है. आज के दौर में जनता को सरकार से केवल इतनी उम्मीद रह गई है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे. उस का घर, परिवार और बिजनैस भी सुरक्षित रहे. कोई दबंग, बाहुबली उस को परेशान न करे. उसे यह पता है कि एनकाउंटर और बुलडोजर न्यायसंगत नहीं हैं, इस के बाद भी वह इन का समर्थन कर रही थी क्योंकि इस से अपराध को रोकने और अपराधियों को डराने में मदद मिल रही थी. उस का यह भ्रम 24 फरवरी, 2023 को टूट गया जब प्रयागराज में उमेश पाल और उस के साथ 2 सिपाहियों की हत्या शाम को 5 बजे भीड़भाड़ वाले इलाके में हो जाती है. वैसे तो प्रदेशभर में अपराध की ऐसी घटनाएं अनेक हैं पर यह मसला हाई प्रोफाइल था तो ज्यादा तूल पकड़ गया.
योगी सरकार की कानून व्यवस्था का प्रचारप्रसार बहुत था. प्रयागराज की घटना ने इस की पोल खोल ने कर रख दी. सड़क से ले कर उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदन तक योगी राज पर सवाल उठने शुरू हो गए. तर्क को दबाने के लिए क्रोध का सहारा लेना पौराणिक कहानियों में बहुत दिखाया गया है. विधानसभा सदन में जब विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने प्रयागराज की घटना पर योगी सरकार को आईना दिखाया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऋषि दुर्वासा की तरह क्रोधित हो कर बोले, 'उस माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा'.
बहस तार्किक न हो कर एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप पर चली गई. असल में योगी सरकार में जिस बात को कानून व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा था वह संविधान को दरकिनार कर के काम कर रही थी. विधानसभा में ऋषि दुर्वासा जैसे क्रोधित हो कर योगी आदित्यनाथ ने जो ऐलान किया, उसे पूरा करने में पुलिस जुट गई. इस में लक्ष्मण की तरह से अतीक अहमद और उस का परिवार तबाह हो गया.
この記事は Sarita の May First 2023 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です ? サインイン
この記事は Sarita の May First 2023 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です? サインイン
कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.