छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के युवक जनवरी को आत्महत्या कर ली थी. जांच के दौरान पुलिस को उस के पास से सुसाइड नोट मिला था जिस में उस ने अपने प्रेमप्रसंग और 2 युवकों का जिक्र किया था जो उसे प्रताड़ित कर रहे थे. पुलिस ने इसी सुसाइड नोट की बिना पर युवती व दोनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया था. युवती से अभिषेक का प्रेमप्रसंग लगभग 6 साल साल चला था, इस के बाद ब्रेकअप हो गया था.
इन्वेस्टिगेशन के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला दर्ज करते एडिशनल सेशन जज राजनांदगांव की अदालत में चालान पेश किया. अदालत ने युवती और दोनों युवकों के खिलाफ आरोप तय किए. आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ बिलासपुर हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पेश किया अपने फैसले में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू ने आरोपियों को आत्महत्या करने के लिए उकसाने के आरोप से मुक्त करते उन्हें बरी कर दिया.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कमजोर मानसिकता में लिए फैसले को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरण नहीं माना जा सकता. यदि कोई मानसिक दुर्बलता के चलते ऐसा यानी आत्महत्या करने जैसा कदम उठाता है तो इस के लिए किसी और को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. भले ही उस ने सुसाइड नोट में नाम ही क्यों न लिखा हो.
सुनवाई के दौरान अभियुक्तों के वकील की इस दलील से अदालत ने इत्तफाक रखा कि मृतक ने सुसाइड नोट में धमकी देने की बात कही है लेकिन इस की शिकायत उस ने पुलिस में नहीं की थी. हालांकि अदालत ने माना कि प्रेम संबंध खत्म करने और शादी करने से इनकार करने की वजह से ही युवक ने आत्महत्या की थी.
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