पराली से प्रदूषण
■ किसानों ने कहा, सरकार की बेरुखी और किसानों की मदद करने में उसकी दिलचस्पी नहीं होने के कारण पराली जलाने का चलन जारी है
उत्तरी राज्यों और राजधानी दिल्ली का दम घोटने वाला पराली का धुआं एक बार फिर चर्चा में है और इस पर पंजाब तथा उसके पड़ोसी राज्यों विशेषकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के बीच खींचतान शुरू हो गई है। पराली फसल का निचला ठूंठ होता है, जिसे काटने के बजाय किसान जला देते हैं ताकि अगली फसल बोने के लिए खेत खाली मिल सके। इसके कारण हर साल सर्दियों में एनसीआर में प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है।
सितंबर के अंत या अक्टूबर के आरंभ में धान की फसल कटने के बाद खेतों में ठूंठ रह जाते हैं, जिनमें से कुछ तो दो फुट तक ऊंचे होते हैं। अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में गेहूं की बोआई शुरू होती है, इसलिए किसानों के पास ठूंठ या पराली हटाने का वक्त नहीं होता। उनके पास पराली खत्म करने का सबसे सस्ता और आसान तरीका उसे जलाना होता है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार हमेशा से इसका आरोप पंजाब सरकार के मत्थे मढ़ती आई है। वह कहती रही है कि पंजाब सरकार समस्या सुलझाने के बजाय हाथ पर हाथ धरे रहती है। मगर पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद पंजाब में भी इसी पार्टी की सरकार बन गई। उसके बाद पार्टी ने पराली जलाना रोकने के लिए और इसे नहीं जलाने वाले किसानों को नकद प्रोत्साहन देने के लिए बजट बढ़ाने जैसे कई कदम उठाए हैं। इस साल भी पंजाब ने पराली जलाना रोकने के लिए करीब 350 करोड़ रुपये रखे हैं, जो पिछले साल के 200 करोड़ रुपये से 75 फीसदी ज्यादा हैं।
इसके उलट वित्त वर्ष 2021-22 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने इसके लिए 40 करोड़ रुपये आवंटित किए थे और उससे पिछले साल तो केवल 1 लाख रुपये दिए गए थे। पंजाब के फिरोजपुर जिले में पीर मोहम्मद गांव का किसान लखविंदर सिंह कहता है, ‘इस साल दिल्ली तक धुआं नहीं जाएगा।’
この記事は Business Standard - Hindi の October 11, 2023 版に掲載されています。
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