भारत में आवश्यकतापरक शिक्षा के लिए हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को प्रज्ञावान भारतीयों के सामूहिक ज्ञान से उत्पन्न नवाचार के रूप में लेना होगा और उस पर निश्चित भाव से नवाचार के रूप में काम करना होगा। इसका अर्थ है कि हमें सभी प्रकार की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए हस्तक्षेपों को लागू करना होगा । उद्योग सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक मानव संसाधन के लिए कौशल के साथ गुणवत्ता, सामर्थ्य और आवश्यकतापरक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवाचारी समाधानों की आवश्यकता है।
गुणवत्ता और मात्रा के बीच 36 का आंकड़ा होता है। आवश्यकता परक गुणवत्ता के लिए, हमें मात्रा का के त्याग करना होगा। लेकिन, लोकतांत्रिक भारत की मजबूरी है कि वह सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाने के साथ-साथ गुणवत्ता सुनिश्चित करे। यह एनईपी 2020 के कार्यान्वयन में एक चुनौती है।
हम में से बहुत से लोग निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में नियोजन की दृष्टि से लापरवाह और अनुपयोगी हैं। असल चुनौती यह है कि कैसे लापरवाह और अनुपयोगी लोगों को वर्तमान सेवा बाजार में नियोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप सतर्क एवं उपयोगी मानव संसाधन में परिवर्तित किया जाए।
सरस्वती और लक्ष्मी की समान रूप से आराधना करने वाला भारत एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में जाने जाने की क्षमता रखता है। बेईमानी का प्रतिफल भ्रष्टाचार है और हमें इसकी कीमत भेदभाव के साथ अक्षमता के रूप में चुकानी पड़ती है। ऐसे में भारत और विदेशों में नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक मानव संसाधन के लिए कौशल के साथ गुणवत्ता, सामर्थ्य और आवश्यकतापरक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवाचारी समाधानों की आवश्यकता है।
प्रशिक्षण की चुनौती
この記事は Panchjanya の September 11, 2022 版に掲載されています。
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
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वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
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आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
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