पर्यावरण की पहरेदारी
Panchjanya|November 20, 2022
जलवायु परिवर्तन से संबद्ध वैश्विक चिंताओं पर संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक सम्मेलन प्रारंभ। परंतु क्या अमीर देश जहरीली गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार तेल एवं गैस कंपनियों पर शुल्क की मांग मानेंगे या दुनिया को तबाही से बचाने के लिए वैश्विक उत्सर्जन को क्रमशः कम करते हुए खत्म करने की व्यावहारिक योजना बन सकेगी
प्रमोद जोशी
पर्यावरण की पहरेदारी

मिस्त्र के शर्म - अल-शेख में 6 नवंबर से शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप27) सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से संबद्ध वैश्विक चिंताएं जुड़ी हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र का यह सबसे बड़ा सालाना कार्यक्रम है। इस खतरे का सामना करने में व्यावहारिक दुश्वारियां ज्यादा बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही हैं। जहरीली गैसों का उत्सर्जन रोकने के लिए दुनिया को हर साल बीस खरब (दो ट्रिलियन) डॉलर खर्च करने होंगे। कौन उठाएगा इतना बड़ा खर्च ? सम्मेलन में शामिल अधिकांश ने साफ कहा कि बातें बहुत हो चुकीं, अब कड़ी कार्रवाई का वक्त है । ग्रीन हाउस गैसों (कार्बन) के लिए जिम्मेदार बड़ी तेल एवं गैस कंपनियों पर शुल्क लगाने की मांग भी तेज हुई है। सवाल है कि क्या अमीर देश इस मांग को मान लेंगे। अभी तक का अनुभव है कि वे 100 अरब डॉलर सालाना के वादे को पूरा करके नहीं दे रहे।

सकारात्मक बात यह है कि 'लॉस एंड डैमेज फंडिंग' को वार्ता के एजेंडे में शामिल कर लिया गया है। जाहिर है कि क्लाइमेट - फाइनेंस और क्षति की भरपाई के लिए अमीर देशों पर दबाव बढ़ने लगा है, पर जितनी देर होगी, लागत उतनी बढ़ती जाएगी।

इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक - सहयोग के रास्ते खोजना है, कॉप-25 और कॉप-26 में जिन मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई, उनके हल निकालने की कोशिश करना भी है। 2015 के पेरिस समझौते के तहत दुनिया के सभी देश पहली बार ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने और ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में कटौती पर सहमत हुए थे।

भारतीय पहल

सवाल है कि कैसे होगा यह काम? अमीर देशों की सहायता अभी मृगतृष्णा है, फिर भी आशा है कि 18 नवंबर को इस सम्मेलन के समापन के पहले कुछ सकारात्मक बातों पर सहमति हो जाएगी। सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव कर रहे हैं।

この記事は Panchjanya の November 20, 2022 版に掲載されています。

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