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■ गिरिजा टिक्कू से लेकर श्रद्धा, रूपाली, अंकिता, निकिता, मनीषा, तो दूसरी तरफ उमेश कोल्हे और कन्हैयालाल। हत्या की इन सभी घटनाओं में जिहादियों ने निर्ममता की हद पार की है। किसी को आरे से काटा गया तो किसी की नाक, कान, गला, सिर, पैर और यहां तक कि स्तन तक को काट डाला गया। इस बर्बर मानसिकता को आप कैसे देखते हैं?
निश्चित ही ये सभी हत्याएं जघन्यता की श्रेणी में आती हैं इन सभी घटनाओं ने देश को हिलाकर रख दिया है। मैं मानता हूं कि इसके पीछे चिंतन की जरूरत है। ऐसी घटनाएं एक मनोरोग और कुत्सित मनोवृत्ति का परिणाम होती हैं। एक कुशल विवेचक का यह कार्य होता है कि हत्यारे की आंख के पीछे जाकर देखे कि उसके दिमाग में क्या चला है । हत्या कोई भी हो, बुरी है। चाकू से लेकर आग्येनास्त्र द्वारा तक । लेकिन शव को टुकड़े करने, आरे से चीरने, अंग-भंग करके क्षत-विक्षत करने के पीछे एक प्रतिशोध, आक्रोश, मानसिक विकलांगता का लक्षण दिखाई देता है। क्या दिमाग की वायरिंग इस तरह से हुई है कि एक नजीर बनाकर हत्या करें? क्योंकि मुगल काल को देखें तो उसमें सजा-ए-मौत मौत सिर्फ एक सजा की तरह नहीं दी जाती थी। हाथी से कुचलवाकर, आग से जलाकर, कढ़ाह में तल करके, दीवार में चुनवाकर सजा दी जाती थी। वे चाहते तो फांसी चढ़ाकर सजा दे सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं करते थे। उनके सलाहकार बताते थे कि ऐसी सजा दी जाए जिससे लोग थर्रा जाएं। सजा नजीर बने। आज भी वही कुत्सित मानसिकता चली आ रही है, इसलिए चिंता का विषय है। मेरा पुलिस विभाग और मनोविज्ञानियों को परामर्श है कि वे अपराधियों की इस मनोवृत्ति के पीछे जाएं और पता लगाएं कि ऐसी निर्मम मानसिकता के पीछे क्या तत्व हैं। इनके दिमाग में कौन जहर भर रहा है।
この記事は Panchjanya の December 18, 2022 版に掲載されています。
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रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
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वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
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फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
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होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
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आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
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नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
![सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/svMZWaTU-1678348852071/1678349040026.jpg)
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
![जीवनशैली ठीक तो सब ठीक जीवनशैली ठीक तो सब ठीक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/Pb70x5v5I1678348590382/1678348848075.jpg)
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
![नाकाम किए मिशनरी नाकाम किए मिशनरी](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/pXR7Tz7zM1678348291074/1678348583361.jpg)
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई