ब्रह्मपुत्र का भार, ‘भारालू' नदी
Panchjanya|January 01, 2023
ब्रह्मपुत्र की तमाम सहायक नदियों में से सबसे बदहाल और सबसे बड़े खतरे का सबब भारालू ही है। सात शहरी वार्डों को छूकर गुजरती इस नदी में जहरीले रसायनों का स्तर खतरनाक है। भारालू नदी पर अलग-अलग एजेंसियों ने वक्त-वक्त पर चेताया है। इस पर कुछ काम भी हुआ है, परंतु सरकारी अमले और नागरिकों को इस बारे में और जागरूक होना पड़ेगा
डॉ. क्षिप्रा माथुर
ब्रह्मपुत्र का भार, ‘भारालू' नदी

देश के ज्यादातर इलाकों में 'जल जीवन मिशन' रफ़्तार पकड़ रहा है। मंत्रालय के डैशबोर्ड से जाहिर है कि जो इलाके, भूभाग और राजनीति - दोनों लिहाज से पेचीदा हैं, वहां 'हर घर नल' की पहुंच आसान लक्ष्य नहीं है। मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में करीब 70 प्रतिशत घर नल से जुड़े हैं जबकि अरुणाचल, त्रिपुरा, नागालैंड में 50 प्रतिशत के आस-पास और सिक्किम और असम के अभी करीब 40 प्रतिशत घर ही हैं जहां पानी पहुंचा है। त्रासदी यही है कि देश में ज्यादा पानी वाले राज्य हों, मैदानी हों या पठार, पीने के पानी की किल्लत हर जगह है। असम में हर घर नल पहुंचाना जितना टेढ़ा काम है, उतना ही बड़ा है छोटी नदियों की साज-सम्भाल का काम। दुनिया के सबसे बड़े नदी तंत्र में एक ब्रह्मपुत्र है, जिसे नदी नहीं, नद का संबोधन रास आता है। असम की प्यास बुझाने वाले इस नद- तंत्र को मैला करने वाली शहरी नदियां उस पर बड़ा दाग हैं, जिसे धोने के लिए, अब भरपूर जोर लगाना होगा। 

भारत के पूर्वोत्तर इलाके में देश की करीब चार प्रतिशत आबादी बसती है। देश के करीब आठ प्रतिशत भूभाग वाले यहां के कुल आठ राज्यों में औसतन 18 हजार मिलीमीटर बारिश होती है। कुछ राज्य इस बारिश के अभ्यस्त हैं और बिना ज्यादा नुकसान गुजर-बसर कर भी लेते हैं। और खामोशी से तकलीफ सहने वालों की गिनती वैसे भी कहां हो पाती है। उनकी सुनवाई तभी हो पाती है जब शासन-प्रशासन की किरकिरी होने लगे या वोटों की राजनीति में वे घेर लिये जाएं। साल दर साल असम की बाढ़ की तस्वीरें, कुदरत के कहर की गवाह बनती हैं। असम का 30-40 प्रतिशत इलाका हर साल बाढ़ से तबाह होता है। प्रदेश में शहरी आबादी लगातार बढ़ रही है, और संसाधनों की परवाह न करने वाली फितरत भी। तीन करोड़ की आबादी को पार कर चुके असम को बाढ़ से हर साल करीब 200 करोड़ रू. का नुकसान सहना पड़ता है। पर्यटन, चाय बागान, कला और हाथ के हुनर की पहचान वाले इस प्रदेश के सबसे जाने-माने शहर गुवाहाटी में भी बाढ़ अपने निशान छोड़कर जाती है। इस इलाके की गलियों- बाजारों में महीनों जमा कीचड़ और गंदगी के साथ बेहिसाब बारिश के अभ्यस्त हो चुके लोग अब न इसकी शिकायत करते हैं, न ही फिक्र। गुवाहाटी की बदहाली, वहां से गुजरती एक छोटी सी नदी की वजह से है, जो मेघालय की पहाड़ियों से निकलती है और आखिर में जाकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है।

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