माटी का मोल
Panchjanya|February 19, 2023
गढ़मुक्तेश्वर के पास ढाना देवली स्थित 'माटी कला केंद्र' के परिसर में आधुनिक मशीनों के माध्यम से मिट्टी के 30 से अधिक प्रकार के बर्तन बनाए जा रहे हैं। इससे जहां लगभग 500 परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है, वहीं पर्यावरण की रक्षा भी हो रही
अरुण कुमार सिंह
माटी का मोल

ज पर्यावरण भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या है। प्लास्टिक की वस्तुएं पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रही हैं। यदि लोगों को प्लास्टिक का सुगम और सस्ता विकल्प मिल जाए तो वे इसे छोड़ सकते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में देखने को मिल रहा है। चाहे चाय दुकानदार हों, ढाबा चलाने वाले हों या फिर बागवानी में लगे लोग, इनमें से अधिकतर लोग मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कर रहे हैं। ये सभी माटी कला केंद्र में बनने वाले मिट्टी के बर्तन खरीद रहे हैं।

यह केंद्र हापुड़ जिले की गढ़मुक्तेश्वर तहसील के विकास खंड बक्सर के ग्राम ढाना देवली में स्थापित है। ढाई बीघा जमीन पर इस केंद्र की स्थापना मेरठ के 'दिशा सेवा संस्थान द्वारा की गई है। इस समय इस केंद्र से प्रत्यक्ष रूप से 300 और अप्रत्यक्ष रूप से 500 लोगों को रोजगार मिल रहा है। ये सभी आसपास स्थित नौ गांवों के निवासी हैं। इनमें से अधिकतर लोग केंद्र में आकर काम करते हैं, बाकी कुछ लोग अपने घर पर उत्पाद तैयार कर केंद्र को दे जाते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि माटी के बर्तन तैयार करने में हर वर्ग के लोग शामिल हैं। वैसे परंपरागत रूप से यह कार्य कुम्हार जाति के लोग करते आ रहे हैं, लेकिन केंद्र ने इस कार्य के लिए सबके द्वार खोल रखे हैं। जो भी इस कार्य से जुड़ना चाहता है, जुड़ सकता है।

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