कलत्र-सौख्यादि नवांश लग्नात् ॥
अर्थात् नवांश लग्न से कलत्रसुख (दाम्पत्य जीवन) आदि का विचार किया जाता है। यही उक्ति सप्तवर्गी जन्मपत्रियों में नवांश कुण्डली के नीचे छपी रहती है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि नवांश का उपयोग केवल दाम्पत्य जीवन की शुभाशुभता आँकने के लिए ही किया जाता है, बल्कि सत्य तो यह है कि नवांश का उपयोग फलित ज्योतिष के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है, जिसमें दाम्पत्य जीवन भी सम्मिलित है। सभी प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों में ज्योतिष के सभी क्षेत्रों के लिए अनेक ऐसे योग एवं सूत्र भरे पड़े हैं, जो नवांश वर्ग पर आधारित हैं, चाहे वह वर्ण-रंग-रूप का क्षेत्र हो, चाहे सन्तान, व्यवसाय, मृत्यु का प्रकार, दाम्पत्य जीवन या राजयोग का क्षेत्र हो।
जीवन के प्रायः सभी प्रमुख क्षेत्रों के विचार के साथ-साथ ग्रहों के शुभाशुभ एवं बलाबल का भी विचार नवांश से किया जाता है। नवांश कुण्डली से फलादेश करने के प्रमुख नियम एवं सिद्धान्त के निम्नानुसार हैं :
1. ग्रहों- भावेशों की शुभाशुभता का विचार करने के लिए नवांश में उनकी स्थिति निम्नलिखित के आधार पर देखी जाती है :
(i) उनकी नवांश राशिगत स्थिति और उससे उनके सम्बन्ध। उच्च, मूलत्रिकोण, स्व एवं मित्र नवांश में ग्रह बली एवं शुभ फलदायक होता है, वहीं इसके विपरीत नीच एवं शत्रु नवांश में उसके शुभत्व में कमी आ जाती है। यदि लग्न कुण्डली में ग्रह उच्चराशि में है, परन्तु नवांश में वह नीच नवांश में है, तो उस स्थिति में उसके शुभ फल प्राप्त नहीं होते। इसके विपरीत यदि ग्रह जन्मकुण्डली में नीच राशि में है, परन्तु नवांश में वह उच्च नवांशगत है, तो उसके अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। उसकी नीचराशिगत स्थिति की अशुभता में काफी हद तक कमी आ जाती है।
この記事は Jyotish Sagar の November 2022 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です ? サインイン
この記事は Jyotish Sagar の November 2022 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です? サインイン
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।