![शिवोपासना की प्राचीनता](https://cdn.magzter.com/1382621400/1676109758/articles/54ex1Xfve1676464765446/1676465090198.jpg)
शिवोपासना विश्व में भगवान् की प्राचीनतम आराधना है। शिव अनादि और शाश्वत देवता हैं। शिव के आविर्भाव का वर्णन अनेक पौराणिक ग्रन्थों तथा वैदिक वाङ्मय में मिलता है। किसी युग में स्वयंभू ज्योर्तिलिंग रूप में तो कभी अन्य रूप में भगवान् शिव का वर्णन मिलता है।
काशी की ज्योर्तिलिंग प्रतिमा स्वयंभू है। कहीं-कहीं शिव भक्त की कठोर आराधना के कारण प्रकट हुए हैं। सोमनाथ का प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग चन्द्रमा की शिवोपासना के परिणामस्वरूप वहाँ शिवजी ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं। हर पुराण, हर वेद और अन्य वाङ्मय कभी रुद्र के रूप में, तो कभी शिव अथवा अन्य पर्यायवाची नाम से विविध मन्त्रों के रूप में उनका गुणगान करता है। जैसा कि निम्नलिखित मन्त्र से शिव का आवाहन किया गया है:
गुरुवे सर्वलौकानां, भिषजे भवरोगिणां। विधये सर्वविधिनां, दक्षिणामूर्तये नमः ॥
अर्थात् जो समस्त विश्व के गुरु हैं, जो मृत्युलोक के सारे पापों का निवारण करते हैं और जो समस्त महान् विद्याओं की निधि हैं, ऐसे उन भगवान् दक्षिणामूर्ति शिव को मैं प्रणाम करता हँ। आदि शंकराचार्य का शिव स्तोत्र है :
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा, श्रवणानयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो।।
अर्थात हे महादेव! आप करुणा के सागर हैं। विनती करता हूँ कि मुझे क्षमा करें। मेरे उन अपराधों के लिए, जो मैंने जाने अथवा अनजाने में, अपने शरीर, वाणी, कर्म, श्रुतियों, नेत्रों अथवा मस्तिष्क से किए हैं। हे करुणा के सागर महादेव जी, आपकी जय-जयकार हो । अन्य एक यजुर्वेद का अति लोकप्रिय शिव मन्त्र है :
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।। [यजुर्वेद]
この記事は Jyotish Sagar の February 2023 版に掲載されています。
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
![पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/zegU84DgF1717490350227/1717490505401.jpg)
पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
![मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/bbPdmvJN-1717490130991/1717490336592.jpg)
मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
![हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vL5RQQZhC1717489780838/1717490123259.jpg)
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
![पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nIlnEEMbu1717489473517/1717489776705.jpg)
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
![शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nlnWRtezY1717485878963/1717486133863.jpg)
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
![गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nvu03X-qv1717485453437/1717485866948.jpg)
गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
![सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vayhOmmzt1717485129027/1717485421191.jpg)
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
![अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/2yWm_u4W31714474136097/1714474267037.jpg)
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
![सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/vHJD203bs1714473957430/1714474112917.jpg)
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।