![कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास](https://cdn.magzter.com/1382621400/1679744238/articles/E5HNeEsDi1679916142064/1679916508860.jpg)
जन्मकुंडली में कालपुरुष की जो कल्पना की गई है, उसमें केतु को राहु एवं शनि के समान ही कालपुरुष का दुःख माना गया है। केतु को अंग्रेजी भाषा में 'ड्रेगन्स टेल' और 'डिसेंडिंग नोड'; उर्दू, फारसी और अरबी में ‘जनब' कहते हैं। यह निम्नलिखित का कारक होता है : मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टीबी, पीड़ा, ज्वर, तप, वायुविकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण करने वाला, पत्थर की चोट, काँटा, ब्रह्मज्ञान, आँख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का।
जब यह कुंडली में बलवान् होता है, तो उपर्युक्त पदार्थों की प्राप्ति होती है और सम्बन्धित घटनाओं, बीमारियों आदि से रक्षा करता है। यह व्यक्ति के जीवन में 48 से 54वें वर्ष तक विशेष प्रभाव डालता है। केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति निम्नलिखित व्यवसायों में सफल रहते हैं : जासूसी, औषधि विक्रय, पुरातत्व विभाग, योग विद्या, आविष्कार, संचार विभाग, ड्राइवर, रबड़ उद्योग, चिकित्सा, पर्यटन, कलाकार, अध्यात्म, अनुवादक, धर्म गुरु, भविष्यवक्ता, फिल्म व्यवसाय और कैमिकल इंजीनियरिंग आदि। वे अन्य पदार्थों से सम्बन्धित व्यवसायों से भी लाभ कमा सकते हैं।
केतु को मोक्ष का कारक भी माना जाता है, अतः केतु का शुभ स्थिति में होना या गुरु के साथ होना शुभ फलदायक होता है। उसे इस लोक में आध्यात्मिक सफलता देता है एवं मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यदि इसके साथ शनि और बुध ग्रह का लग्न या लग्नेश से , शुभ सम्बन्ध हो, तो विशेष लाभ मिलता है। केतु ग्रह धनु राशि में 15 अंश तक उच्च का, मिथुन राशि में 15 अंश तक नीच का, मकर राशि में मूल त्रिकोण का, मतान्तर से वृषभ राशि में और मीन राशि में स्वराशि का होता है। कुंडली में बारह भावों में से 3, 6, 10 और 11वाँ भाव शुभ, 1, 2, 5, 7 और नौवाँ भाव अरिष्ट कारक और 4, 8, 12वाँ अत्यन्त अरिष्टकारक होता है। यह गोचर में एक राशि पर 18 माह रहता है। इसकी महादशा 7 वर्ष रहती है। यदि केतु अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो. गुरु के साथ स्थित हो या गुरु से समसप्तक हो, तो व्यक्ति को सर्वाधिक प्रगति हैं।
この記事は Jyotish Sagar の April-2023 版に掲載されています。
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![केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/SuR0wj8HF1738759486501/1738759610756.jpg)
केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
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उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
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इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
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'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
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त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।