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साधु की संगति दुष्ट पुरुषों को भी सज्जन बना देती है। साधु की संगत से दुराचारी पुरुष भी सदाचार का पालन करते हैं, बशर्ते वह प्रज्ञावान् और ब्रह्मनिष्ठ होना चाहिए। यदि साधु की साधुता में जरा-सी भी कमी हो, तो वह साधु दुष्ट अथवा पापी पुरुष की कुसंगति से अपनी साधुता खोकर असाधु हो जाता है। यही किस्सा गुरु-चाण्डाल योग का है।
नैसर्गिक रूप से सर्वाधिक शुभ ग्रह और सात्विक ज्ञान का कारक ‘सुरगुरु’ यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शुभ भावेश होकर कारक हो और उसे षड्बल भी प्राप्त हो, तो ऐसे बलवान् अति सौम्य पुरुष की पाप ग्रह (शनि अथवा राहु) से युति या परस्पर दृष्टि सम्बन्ध हो, तो उन पाप ग्रहों की क्रूरता या पापत्त्व का नाश हो जाता है, अत: गुरु की सत्संगति से पापी ग्रह भी शुभ फल प्रदान करते हैं और गुरु भी दूषित नहीं होता जैसे : चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
गुरु के निर्बल, अशुभ भावेश अथवा अकारक होने पर गुरु-राहु की युति चाण्डाल योग का निर्माण करती है। राहु चाण्डाल जाति-स्वभाव का है। इसलिए इस योग को गुरु-चाण्डाल योग कहा जाता है। अधिकांशत: यह योग अशुभ फलदायी होता है। गुरुचाण्डाल योग में विच्छेदात्मक पापग्रह राहु गुरु के नैसर्गिक कारकत्व और शुभ फलों को नष्ट भ्रष्ट कर देता है।
गुरु-चाण्डाल योग का फल
गुरु-चाण्डाल योग के निम्नलिखित फल हैं:
1. अपनी जन्मकुण्डली में गुरु-चाण्डाल योग (गुरुराहु की युति) रखने वाला व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षड्यन्त्रकारी, स्वार्थी और कामुक होता है। मादक द्रव्यों का सेवन करने वाला वातादि रोगों से ग्रस्त एवं पूर्वजन्म का पापी होता है। गुरु-चाण्डाल योग वाले जातक में कोई न कोई शारीरिक, मानसिक विकृति अथवा विकलांगता देखी जाती है।
2. गुरु स्वर्ण, धन, शारीरिक पुष्टि, विद्या, ज्ञान, धर्म और आध्यात्मिक सुख का कारक है। गुरुचाण्डाल योग में व्यक्ति के जीवन में इन चीजों का ह्रास अथवा नाश होता है। सन्तान सुख और दाम्पत्य सुख में भी यह बाधा उत्पन्न करता है।
この記事は Jyotish Sagar の April-2023 版に掲載されています。
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केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
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उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
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इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
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केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।