भगवान् विष्णु के अवतार माने जाने वाले परशुराम सप्त चिरंजीवियों में अग्रगण्य हैं। प्राचीन काल में एक समय सम्पूर्ण पृथ्वी पर क्षत्रियों का अनाचार बढ़ गया था। वे प्रजा को नाना प्रकार से कष्ट पहुँचाया करते थे। इससे परेशान होकर ब्राह्मणों ने भगवान् विष्णु की अनेक प्रकार की स्तुति और तप से प्रसन्न किया। तब भगवान् विष्णु ने अन्याय और अत्याचार को मिटाने के लिए एवं धर्म की पुन:स्थापना के लिए वैशाख शुक्ल तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में माता रेणुका के गर्भ से जन्म लिया।
परशुराम जी ने केवल एक युग के नियामक के रूप में ही भूमिका का निर्वहण नहीं किया है, वरन् तीन युगों को विनियमित किया है। भगवान् विष्णु ने जनकल्याणार्थ, अधर्म विनाशा एवं धर्मसंस्थापनार्थ यह अवतार लिया। परशुराम जी का वास्तविक नाम राम ही था, परन्तु देवाधिदेव भगवान् महादेव प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वे 'परशुराम' कहलाए। ये आवेशावतार, अद्वितीय न्यायमूर्ति, वेदज्ञ, परशुधारी, सर्वक्षत्रियान्तक, ऋषि पुङ्गव, कामधेनु उद्धारक, शोषित जनपालक, सहस्रार्जुन दर्पान्तक एवं ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं।
यदि इनके गुणों की बात की जाए, तो परशुरामजी न्यायप्रिय, सर्वदर्शी, पितृभक्त, निर्बलों के रक्षक, कृपासिन्धु, कर्मनिष्ठ, ध्येयनिष्ठ, तपोनिष्ठ, महादेव भक्त, रणकुशल, धर्म संरक्षक, सर्वज्ञ तेजस्वी, श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता, सहिष्णु, आचारवान्, प्रज्ञावान्, अचिन्त्यस्वरूप एवं पुराणपुरुष हैं।
この記事は Jyotish Sagar の April-2023 版に掲載されています。
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एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।