वसुदेव मथुरा बरात लेकर आए थे मथुरापति कंस की बहिन का वरण करने के लिए। देवकी-वसुदेव के विवाह में कंस उत्साहित था, इतना कि, स्वयं राजा होते हुए भी वर-वधू का रथ चलाते हुए अपनी बहिन को विदा करने जा रहा था। स्पष्ट है, उसके मन में अपनी बहिन के लिए अथाह प्रेम और बहनोई के लिए सम्मान था। वे लोग रथ में खुशी के साथ जा ही रहे थे, तभी आकाशवाणी हुई, “कंस! तू जिस देवकी के विवाह से इतना प्रसन्न है, उसी की आठवीं सन्तान तेरी हत्या करेगी।"
कंस स्तब्ध! देवकी खामोश! वसुदेव किंकर्तव्यविमूढ़ ! एकबारगी तो समूचा मथुरा ठहरसा गया। उस सन्नाटे को तोड़ा कंस की हुंकार ने, “तो मैं इस देवकी का ही वध कर देता हूँ।"
इस पर शुद्ध सत्त्वगुण स्वरूप वसुदेव बड़े शान्त भाव से बोले, “जो आया है, वह जाएगा। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होनी ही है। इसीलिए तो महात्मा लोग मृत्यु को टालने की नहीं, सुधारने की सलाह देते हैं। शरीर का नाश तो होगा ही। वैर न करो। वैर या सुख की वासना मृत्यु को भ्रष्ट करती है। प्रभुस्मरण करते हुए जो मरता है, उसकी मृत्यु सुधरती है। देवकी की हत्या से तो तुम अमर नहीं हो जाओगे और फिर देवकी तो तुम्हारी मृत्यु का कारण नहीं।"
यह सारगर्भित बात कंस की समझ में आ गई, बोला, "हाँ, यह तो है।"
वसुदेव ने कहा, “मैं देवकी की सभी सन्तान तुम्हें देता रहूँगा।"
कंस ने सोचा कि फिर क्यों मैं स्त्री की, वह भी बहिन की हत्या का पाप करूँ और बोला, "ठीक है, मैं देवकी की हत्या नहीं करूँगा।"
この記事は Jyotish Sagar の September 2023 版に掲載されています。
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
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प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।