![मूलसंज्ञक नक्षत्र में जन्म कहीं अशुभ कर्मों का फल तो नहीं](https://cdn.magzter.com/1382621400/1693218708/articles/7SsKdJIL41693460033795/1693460337926.jpg)
मूलसंज्ञक नक्षत्र में जैसे ही जन्म होता है, तो पण्डित जी कहते हैं कि जातक 'मूलिया' हुआ है, अतः ग्रह शान्ति होगी और फिर 27 जगह का जल, 27 तरह के पेड़ों की पत्तियाँ, 27 तरह के अनाज, 27 तरह की मिट्टी और माता-पिता जातक का 100 छिद्र वाले कलश से अभिषेक और फिर नक्षत्र शान्ति हेतु हवन किया जाता है।
प्रस्तुत लेख का उद्देश्य यह बताना है कि क्या उपर्युक्त शान्ति करने के बाद नक्षत्र दोष समाप्त हो जाता है? इसी समीक्षा को हम इस लेख में प्रस्तुत करेंगे। पहले एक सत्य कहानी सुन लें।
रघुवीर सिंह एक सरकारी अधिकारी है। वह दबाकर रिश्वत लेता है। दो पुत्र हैं। उनको नौकरी नहीं मिली, लेकिन रघुवीर ने अपनी अफसरी के दम पर दोनों की शादी करवा दी। फिर रघुवीर के यहाँ एक पोते का जन्म हुआ। पोते का मूल नक्षत्र में जन्म हुआ। पण्डित जी ने मूल शान्ति की बात कही, तो रघुवीर ने शानदार तरीके मूल शान्ति करवाई और लंगर भी लगाया। फिर एक वर्ष बाद दूसरे पुत्र के यहाँ पोती का जन्म हुआ। वह भी मूल नक्षत्र में जन्मी। रघुवीर ने फिर शानदार से तरीके से मूल नक्षत्र की शान्ति करवाई।
यानि दो बच्चे, दोनों ही पुत्रों को मूलिया जन्मे, लेकिन मनुष्य शान्ति कराने के पीछे भाग लेता है। वह यह नहीं देखता कि उसने या उसके परिवार में पापकर्म कितना हुआ है? यहाँ यदि रघुवीर रिश्वतखोरी और अनीतिपूर्ण आचरण नहीं अपनाता, तो मूलिया नक्षत्र में बच्चे जन्मते ही नहीं, यानि पहले गलत कर्म हुए और फिर ऐसे अशुभ योगों में बच्चे जन्मे और जब बच्चे अशुभ कर्मों के परिणाम का फल है, तो उन्हें भोगना ही होगा, क्योंकि कर्मफल से कोई नहीं बचा।
मूलसंज्ञक नक्षत्र है क्या? अब यह जान लेते हैं। अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती इन छह नक्षत्रों में जब जन्म हो, तो जातक 'मूलिया' होगा। जातक पारिजात के अनुसार :
この記事は Jyotish Sagar の September 2023 版に掲載されています。
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
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आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
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हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
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पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
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सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।