आमेर-जयपुर के महाराजाओं की ख्याति न केवल उनकी प्रशासनिक क्षमता एवं रणकौशल के कारण है, वरन् विज्ञान, कला, साहित्य आदि में उनकी प्रवीणता तथा गुणग्राह्यता के कारण भी है। इसी वंश में 1778 से 1803 ई. में महाराजा सवाई प्रतापसिंह का शासन रहा है। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध हवामहल का निर्माण करवाया तथा 'ब्रजनिधि' के नाम से साहित्य सृजन किया।
महाराजा प्रतापसिंह का जन्म पौष कृष्ण द्वितीया संवत् 1821 तदनुसार 10 दिसम्बर, 1764 (सोमवार) को जयपुर में हुआ था। वे अपने माता-पिता की द्वितीय सन्तान थे। उनके पिता सवाई माधोसिंह प्रथम जयपुर के महाराजा थे। माता का नाम चूँडावत था। अपने ज्येष्ठ भ्राता पृथ्वीसिंह का किशोरावस्था में ही निधन हो जाने पर ये वैशाख कृष्ण तृतीया (बुधवार) संवत् 1835 तदनुसार 15 अप्रैल, 1778 ई. को केवल 14 वर्ष की आयु में ही सिंहासनारूढ़ हुए। उस समय भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। मुगलों की केन्द्रीय शक्ति के पतन से अनेक क्षेत्रीय सत्ताएँ अस्तित्व में आ गयीं और उनमें सतत संघर्ष विद्यमान था।
जयपुर आन्तरिक समस्याओं के साथ–साथ मराठों, भरतपुर के जाटों एवं अनेक मुस्लिम शासकों के साथ-साथ अंग्रेजों के आक्रमण आदि से आतंकित एवं आशंकित था। महाराजा प्रताप सिंह ने इन सभी समस्याओं को अपनी योग्यता से बखूबी संभाला।
महाराजा प्रतापसिंह योद्धा एवं प्रतापी होने के साथ-साथ अपरिमित मेधासम्पन्न, भावुक एवं सहृदय भक्त कवि भी थे। उनके द्वारा रचित 23 ग्रन्थों का संग्रह 'ब्रजनिधि ग्रन्थावली' के नाम से 'नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुका है, जिसमें प्रकाशित ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है-
1. प्रेमप्रकाश (फाल्गुन कृष्ण नवमी, संवत् 1848)
2. फागरंग (फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, संवत् 1848)
3. प्रीतिलता (चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, संवत् 1848)
この記事は Jyotish Sagar の January 2024 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です ? サインイン
この記事は Jyotish Sagar の January 2024 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です? サインイン
बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।