समझ लो कि दूसरे देवी-देवता सो रहे हैं।... जब हम इस प्रत्यक्ष देवता की पूजा कर लेंगे, तभी हम दूसरे देव - देवियों की पूजा करने योग्य होंगे, अन्यथा नहीं।" स्वामी विवेकानन्द के इस आह्वान ने भारतवासियों को देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। एक राष्ट्रभक्त संन्यासी के रूप में स्वामीजी का सम्पूर्ण जीवन पराधीन भारत के युवाओं के लिए आदर्श बन गया था। स्वामीजी के क्रान्तिकारी विचारों ने समूचे भारत चेतना का अलख जगाया था। राष्ट्रीय प्रश्न यह उठता है कि स्वामीजी के कालखंड में भारत की स्थित कैसी थी? तत्कालीन भारतीय समाज की अवस्था कैसी थी? भारतीय समाज के मन मस्तिष्क में किस तरह के विचार थे? इन प्रश्नों की गहराई में जाने पर ही हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वामीजी के प्रभाव का पता चल सकता है।
उल्लेखनीय है कि स्वामी विवेकानन्द के समय प्रायः समग्र भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन चुका था या देशी रियासतें उसके नियंत्रण में थीं। उस समय कलकत्ता (अब कोलकाता), ब्रिटिश भारत की राजधानी थीं। वहाँ पर सम्पूर्ण भारत की झलक मिलती थी। विदेशी विचारों और भावों के द्वारा भारत राष्ट्र के जीवन-रस को चूसा जा था। हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर उन्हें ईसाई या मुसलमान बनाने में विधर्मी समान रूप से प्रयत्नशील थे। ब्रिटिश शासन का लाभ उठाकर विदेशी ईसाई मिशनरी जोर शोर से हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू तत्वज्ञान पर भीषण प्रहार तथा हिन्दू समाज का अपमान कर रहे थे। भारत का अधिकांश अंग्रेजी में शिक्षित वर्ग अंग्रेज-भक्त होकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की दिशा में आगे बढ़ रहा था। इस सम्बन्ध में स्वामी गम्भीरानन्द “युगनायक विवेकानन्द" पुस्तक में लिखा है, "मुसलमानों की भांति केवल अस्त्र-शस्त्र की सहायता से राज्य का विस्तार करना, धन-वैभव लूटना या धर्म परिवर्तन करना उनका (अंग्रेजों) उद्देश्य नहीं था। व्यापार के बहाने से यन लूटना ही उन लोगों का मुख्य प्रयोजन था। इस कार्य में सहायता पाने के लिए परदेशियों में अपनी संस्कृति का प्रचार
この記事は Kendra Bharati - केन्द्र भारती の Kendra Bharati - August 2022 Issue 版に掲載されています。
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष