जीवन तो चलने का नाम है और परिवर्तन इसका नियम । समय के पहिए में एक और चीज है जो अभिभावक अपनी संतान को देती है वह है परवरिश। परवरिश के तौर-तरीकों पर हमेशा बात होती है। हर मां-बाप चाहते हैं कि वह ऐसी परवरिश करें कि उनकी संतान आगे चलकर एक कामयाब इंसान साबित हो। हमारे यहां में दो तरह की परवरिश इस समय देखी जा रही है। एक वैसी जो हमने अपने मां-बाप से सीखी और एक वो है आज के जमाने के नये जमाने के माता-पिता की मॉडर्न पेरेंटिंग आइए इस लेख में चर्चा करते हैं इन दोनों परवरिश के अंदाज पर-
पारिवारिक मामलों से बच्चों को दूर रखना
बच्चे का मन है बच्चा सवाल पूछता है? कई बार मां-बाप का अपने भाई-बहनों या रिश्तेदारों से झगड़ा हो जाता है। पारंपरिक परवरिश की बात करें तो बच्चे के अंदर हिम्मत ही नहीं होती कि वह अपने मां-बाप से उनके संबंधों के बारे में कोई सवाल करे। अगर बच्चा हिम्मत करके पूछ भी ले तो कह दिया जाता था कि यह बच्चों की बात नहीं है। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसी बहुत सी बातें हैं इस तरह की परवरिश जहां बहुत मामलों में बच्चों को स्थिति से अलग रखा जाता है। उन्हें लगता है कि बच्चे उस स्थिति को जानकर क्या करेंगे। कहीं ऐसा न हो कि वे उसे लेकर कोई नकारात्मक छवि अपने बाल मन में बना लें।
निर्णय लेने के स्वतंत्रता न देना
この記事は Grehlakshmi の December 2022 版に掲載されています。
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