आज महिलाएं घर संभालने के साथसाथ कमाई करने बाहर भी जाती हैं. बच्चों के पालनपोषण और परिवार की देखभाल के साथ ही घर खर्च में भी मदद करती हैं. हाल ही में वर्किंग स्त्री नाम की एक सर्वे रिपोर्ट जारी हुई. करीब 10 हजार महिलाओं पर किए गए इस सर्वे में पाया गया कि दिल्ली में 67% से अधिक कामकाजी महिलाएं अपनी तनख्वाह से घर खर्च में सक्रिय योगदान देती हैं. वहीं 31% महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी आधी सैलरी घर की जिम्मेदारियों पर खर्च करती हैं.
जाहिर है आर्थिक रूप से महिलाएं जिम्मेदार और आत्मनिर्भर हैं. इस के बावजूद आज भी वित्तीय फैसले वे पिता, भाई और पति की मदद से ही लेती हैं, 'औनलाइन मार्केट प्लेस इंडिया लैंड्स' द्वारा कराए गए इस सर्वे में मैट्रो, टियर 1 और टियर 2 की 21 से 65 उम्र वर्ग की 10 हजार से ज्यादा कामकाजी महिलाओं से सवाल पूछे गए. रिपोर्ट में कामकाजी महिलाओं को ले कर जो आंकड़े सामने आए वे वाकई चौंका देने वाले हैं.
दिल्ली की 47 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि घर के खर्चों को नियमित रूप से ट्रैक करने में मुश्किल होती है. 37% महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें क्रैडिट स्कोर से संबंधित कोई जानकारी नहीं. वहीं दिल्ली की करीब 32% कामकाजी महिलाओं ने बताया कि बचत और निवेश से जुड़े फैसले लेने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है. हालांकि यह समस्या केवल दिल्ली की महिलाओं को ही नहीं बल्कि देशभर में अधिकतर कामकाजी महिलाएं वित्तीय फैसले लेने के लिए अपने पिता, पति या भाई पर निर्भर होती हैं.
पुरुषों की तुलना में कम भागेदारी
इसी तरह एलएक्सएमई द्वारा एक्सिस माय इंडिया (ए ऐंड माई इंडिया) के साथ मिल कर किए सर्वे के अनुसार देश की 33% महिलाएं निवेश के बारे में कुछ भी ध्यान नहीं देती हैं. बाकी महिलाओं की पहली पसंद सोना और फिक्स्ड डिपोजिट है. इस से आगे वे दूसरे तरह के निवेश में उन की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. कई महिलाएं कंपनियों में बड़ी जिम्मोरियां के चलते सिर्फ अपने घर और बच्चों की चिंता में उलझे रहने के कारण निवेश नहीं कर पाती हैं.
この記事は Grihshobha - Hindi の March Second 2024 版に掲載されています。
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