मुझे भी पटना ही गाड़ी छोड़कर दूसरी गाड़ी पकड़नी थी। अतः उठकर बैठ गया और पटना जंक्शन आने की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ ही क्षण बाद पटना जंक्शन पर घरघराती हुई गाड़ी लग गई। कुली... कुली ! हल्ला करते हुए मैं भी अपना सामान बांधने लगा और कुली के आने के बाद सारा सामान उसके माथे पर रखकर बरौनी जाने वाली गाड़ी में चढ़ने को कहा, तो उसने प्लेटफॉर्म पर आकर सामान रख दिया और दो घंटे इन्तजार करने को कह किसी दूसरे पैसेन्जर (यात्री) की खोज में आगे बढ़ गया।
मैं वहीं अपने सामान को रखकर उसके ऊपर ही बैठ गया। बैठे-बैठे सोचने लगा कि यही पटना है, जहां कभी तीन दिन तक न खाने की व्यवस्था हो सकी थी और न रहने की। बाद में एक परचून दुकान वाले के कहने पर बम्बई चला गया। पुरानी स्मृति मानस पटल पर चलचित्र की तरह एक-एक कर आती गई कि कैसे दिनभर भटकते, भूखे पेट एक फुटपाथ के चाय-नाश्ता के दुकानदार से बहुत आरजू की कि यहां कोई काम मिल जाए।
बम्बई जैसे शहर में भी विरजू जैसा आदमी मिल सकता है, सपने में भी नहीं सोचा था मैंने। उसने अपनी दुकान में खाना खिलाया। रात में उसी खाने वाले बेंच को साफ कर सोने के लिए जगह दी और मेरी सारी जानकारी लेकर एक-दो दिन यहीं रूकने को कहकर मेरी नौकरी का इन्तजाम करने लग गया।
भगवान की कृपा से एक फैक्टरी में मेरा इन्तजाम हो गया, दरबान की जगह पर। अब दिनभर सोता, रात को दरबानी करता। खाना, नाश्ता, चाय, विरजू के यहां ही होता। विरजू मेरे लिए भगवान हो गया। डूबते को तिनके का सहारा मैं विरजू को विरजू चाचा कहने लगा। हफ्ता मिलता, विरजू चाचा का हिसाब करता और जो बचता, उन्हीं के पास जमा कर देता। समय किसी तरह से कटने लगा।
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तीन मछलियां
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। \"जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थीं। वह जलाशय लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा \"यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।\"
लड़ते बकरे और सियार
एकदिन एक सियार किसी गांव से गुजर रहा था। उसने गांव के \"बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी।
एक नेता का कबूलनामा
चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सीट बंटवारे की पहली लिस्ट पार्टी जारी कर चुकी थी। कई नेताओं के नाम इस लिस्ट में नहीं थे। सभी असंतुष्ट नेता पार्टी कार्यालय में आकर हंगामा मचा रहे थे। कुछ नेता 'पार्टी अध्यक्ष मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे थे, तो कुछ गमला-मेज-कुरसी पटक रहे थे। लोटन दास अपनी धोती खोलकर प्रवेश द्वार पर बिछा धरने पर बैठ गये। अन्य नेताओं से चिल्लाकर बोले, \"भाइयों, आप भी इस मनमानी के खिलाफ हमारा साथ दें। पैसे देकर खरीदे गये हैं टिकट ! इसके खिलाफ हम यहां नंग-धड़ंग धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे।\"
भोलाराम का जीव
ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास - स्थान 'अलॉट करते आ रहे थे... पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।
कसबे का आदमी
सुबह पांच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झांसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रौशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य साफ हो रहे थे, जैसे कोई चित्रित कलाकृति पर से धीरे-धीरे ड्रेसिंग पेपर हटाता जा रहा हो। उसे यह सब बहुत भला - सा लगा। उसने अपनी चादर टांगों पर डाल ली। पैर सिकोड़कर बैठा ही था कि आवाज सुनाई दी, ' पढ़ो पटे सित्ताराम सित्ताराम...'
मुगलों ने सल्तनत बख्श दी
हीरेजी को आप नहीं जानते और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया।
भिखारिन
जाह्नवी अपने बालू के कम्बल में ठिठुरकर सो रही थी। शीत कुहासा बनकर प्रत्यक्ष हो रहा था। दो-चार लाल धारायें प्राची के क्षितिज में बहना चाहती थीं। धार्मिक लोग स्नान करने के लिए आने लगे थे।
अंधों की सूची में महाराज
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
कौवे और उल्लू का बैर
एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।