सहकारिता ही बचा सकती है कृषि को
Modern Kheti - Hindi|1st November 2022
"सहकारी समितियां हमारी कृषि-किसानी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण संस्थानिक पद्धति है। ये सभी सहकारी समितियां कृषि संबंधी आर्थिक विकास की गतिविधियों में लगी हुई हैं।"
डॉ. यादविन्दर सिंह
सहकारिता ही बचा सकती है कृषि को

कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। एक साधारण किसान की जिंदगी और जीविका कृषि आमदनी से ही चलती है। सहकारी समितियां हमारी कृषि-किसानी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण संस्थानिक पद्धति है। ये सभी सहकारी समितियां कृषि संबंधी आर्थिक विकास की गतिविधियों में लगी हुई हैं। मसलन बीजों का वितरण, खाद, दवाएं या कृषि उत्पादों के वितरण, कृषि उत्पादों के विपणन, भंडारण अथवा प्रसंस्करण में क्रियाशील हैं।

भारत का सहकारी क्षेत्र विश्व के सबसे बड़े सहकारी क्षेत्रों में आता है। आंकड़ों के अनुसार 5.5 लाख के लगभग सहकारी समितियां हैं। इनकी सदस्यता 22.95 करोड़ से अधिक है और कार्यशील पूंजी लगभग 38,000 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। सहकारिता के अंतर्गत लगभग सभी गांव कवर किये गये हैं। करीब तीन चौथाई ग्रामीण परिवार सहकारी संस्थानों के सदस्य हैं।

सहकारिता समितियों का शोषण रहित चरित्र या 'एक आदमी एक वोट' का सिद्धांत कुछ ऐसी बातें थीं जो इन्हें चौतरफा विकास का एक उपकरण बना सकती थीं। पर ऐसा हुआ नहीं। आज सरकार खुद स्वीकार करती है कि इनमें संगठनात्मक दुर्बलताओं और क्षेत्रीय असंतुलन जैसी कुछ कमियां रह गईं। हमारी सरकार मानती है कि ऐसी कमियों का कारण अत्याधिक संख्या में सुषुप्त या निष्क्रिय किस्म की सदस्यता, सरकारी सहायता पर निर्भरता और बढ़ती हुई अतिदेयताएं हैं। हालांकि कमियों की वजह सिर्फ इतनी ही नहीं हैं। कुछ दूसरे कारण भी हैं। इन्हें जानना इसलिए जरूरी है ताकि इन कारणों को दूर किया जा सके। फिर धीरे-धीरे कमियों से छुटकारा पाया जा सके। सदस्यों से कम डिपाजिट की व्यवस्था कर पाना या व्यवसायिक प्रबंध का अभाव कुछ दूसरे कारण हैं।

सरकार का यह कदम प्रशंसनीय है जिसमें सहकारी समितियों के पुनरोद्धार के लिए ठोस उपाय किए गए हैं। इसमें इन समितियों को जीवंत लोकतांत्रिक संगठन बनाने के साथ-साथ सदस्यों की सक्रिय भागीदारी पर जोर दिया गया था।

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