वर्तमान में एशिया के सबसे बड़े जैव ईंधन उत्पादक देश इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, चीन जनवादी गणराज्य और भारत हैं। दूसरे शब्दों में दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के साथ दो आर्थिक दिग्गजों, यानी जैव ईंधन उद्योग में भारत और चीन एकमात्र प्रतिभागी हैं। जबकि दक्षिणपूर्व एशियाई देश मुख्य रूप से निर्यात पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जबकि भारत और चीन अपने जैव ईंधन कार्यक्रमों को अपने उत्साही आर्थिक विकास को बनाए रखने और पेट्रोलियम निर्भरता को कम करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्था की रिपोर्ट वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2017 के अनुसार, 2030 में दुनिया भर में ऊर्जा की मांग 50 प्रतिशत अधिक होगी। अकेले चीन और भारत को इस परिदृश्य के दौरान मांग में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इस बीच भारत का ऊर्जा का प्रमुख स्रोत कोयला है जिसका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है और वर्तमान में परिवहन ईंधन की बढ़ती मांग का सामना करने के लिए पेट्रोलियम आयात किया जाता है। भारत का इथेनॉल बाजार अपने बायोडीज़ल बाजार से अधिक परिपक्व है। 2003 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ई.बी.पी.) कार्यक्रम का पहला चरण लांच किया था जिसमें नौ राज्यों के लिए (कुल 29 में से) और चार केन्द्र शासित प्रदेश (कुल 6 में से) गैसोलीन में 5 प्रतिशत इथेनॉल का मिश्रण अनिवार्य है। चूंकि भारत में खाद्य वनस्पति तेल की अपर मात्रा नहीं है, इसलिए यहां बायोडीजल उत्पादन मुख्य रुप से गैर खाद्य वनस्पति तेल जैसे जेट्रोफा, माहुआ, करंज और नीम पर केन्द्रित था। अप्रैल 2003 में बायोडीजल पर राष्ट्रीय मिशन शुरु किया गया था और वर्ष 2012 तक लक्षित 20 प्रतिशत (बी 20) तक पहुंचने के उद्देश्य से जेट्रोफा को सबसे उपयुक्त तेल बीज संयंत्र के रुप में पहचाना गया है। इसे प्राप्त करने हेतु, सरकार ने जेट्रोफा लगाने के लिए 11.2 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र को लक्षित किया था ताकि बायोडीजल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त तेल के बीज पैदा हो सकें।
Denne historien er fra January 15, 2024-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra January 15, 2024-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।