विश्व की तिलहन उत्पादकता में केवल 10 से 12 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी है। भारत में तिलहन उत्पादकता औसत केवल 935 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है जबकि विश्व का औसत 1632 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर औसत है। भारत में मुख्यतः तिलहन उत्पादन वाले क्षेत्रों में लगभग 40 से 45 प्रतिशत मृदाओं में गंधक की कमी देखी गई है। तिलहन में उत्पादन तथा मांग के उत्पादन को पूरा करने के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन एक विशेष महत्व रखता है। उचित खाद तथा उर्वरक प्रबन्धन, तिलहन उत्पादन को दोगुना करने के लक्ष्य प्राप्ति के लिए जरुरी है।
तिलहनी फसलों में गंधक की कमी के कारण :
★ अधिक उपज देने वाली प्रजातियों की उत्पादन क्षमता अधिक होने के साथ ही उनकी गंधक और अन्य तत्वों की आवश्यकता भी बहुत अधिक है।
★ फसलों के द्वारा गंधक पोषक तत्व का अति दोहन।
★ फसलों में नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम वाले खाद एवं उर्वरकों को महत्व देना।
★ उर्वरक तथा जैविक खाद का कम उपयोग।
★ रेतीली मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की अधिक कमी गंधक की कमी से शीघ्र प्रभावित होती है जबकि गंधक और कार्बनिक पदार्थ का सीधा सम्पर्क होता है।
★ रेतीली मिट्टी में पोषक तत्व रखने की क्षमता कम होती है।
★ भारतीय मृदाओं में जैविक पदार्थ की अधिकतर कमी है गंधक कार्बनिक पदार्थों की संरचना का अभिन्न अंग है।
★ सघन खेती के अन्तर्गत अधिक उपज देने वाली किस्मों का अधिक प्रयोग भी गंधक की कमी को बढ़ावा दे रहा है।
★ गंधक रहित खादों का प्रयोग अधिक हो रहा है।
★ तिलहनी फसलों की गंधक की आवश्यकता अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक होती है। अतः जिन क्षेत्रों में लगातार ये फसलें उगाई जाती हैं, उन मृदाओं में गंधक की कमी की सम्भावना अधिक रहती है।
★ जिन क्षेत्रों के सिंचाई जल एवं वायुमण्डल में सल्फर नहीं पाया जाता, वहां भी सल्फर की कमी पायी जाती है।
फसलों मे गंधक के कार्य :
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