यह बताता है कि कैसे आम जनता आंदोलन करती थी और ब्रिटिश सरकार उन पर अत्याचार करती थी. इस आंदोलन से यह भी पता चलता है कि कैसे पूरे देश की जनता इस आंदोलन प्रभावित हुई. आइए, इस आंदोलन के महत्त्व को जानें :
ब्रिटिश सरकार बंगाल राज्य के विशाल आकार (क्षेत्रफल 1,90,000 वर्ग मील) और घनी आबादी (7.85 करोड़ ) के कारण प्रशासनिक रूप से उस का विभाजन करना चाहती थी, लेकिन बंगाल की जनता इस विभाजन के खिलाफ थी. उन को लगता था कि इस से बंगाली पहचान खतरे में पड़ जाएगी और ब्रिटिश सरकार बंगालियों को आपस में विभाजित कर के उन की एकता को कमजोर करना चाहती है.
वैसे तो बंगाल विभाजन की बात 1874 से ब्रिटिश सरकार ने उठानी शुरू कर दी थी, लेकिन बंगालियों के विरोध के कारण इस की गति धीमी रही. लेकिन लौर्ड कर्जन जैसे ही 6 जनवरी, 1899 को भारत का गवर्नर जनरल बना, बंगाल विभाजन की प्रक्रिया में तेजी आ गई. 1903 में बंगाल विभाजन के प्रस्ताव आने शुरू हो गए. इस पर लगातार बहस चलती रही और आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने 19 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन का अपना प्रस्ताव पारित कर दिया. अगले ही दिन 20 जुलाई को यह प्रस्ताव 'कलकत्ता प्रेस' ने प्रकाशित कर दिया कि बंगाल का विभाजन हो कर रहेगा.
खबर छपते ही पूरा बंगाल आक्रोशित हो उठा. जगहजगह बंग भंग (बंगाल विभाजन) के खिलाफ छोटीबड़ी सभाएं होने लगीं. एक सरकारी रिकोर्ड के हिसाब से ऐसी 2 हजार सभाएं गांव और शहरों में आयोजित हुईं.
7 अगस्त, 1905 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के टाउनहौल में होने वाली सभा सब से बड़ी और ऐतिहासिक थी. इस की अध्यक्षता कासिम बाजार के राजा सर मणींद्र चंद्र नंदी ने की. हालांकि यह सभा शाम 5 बजे होनी थी, लेकिन 2 बजे से ही वहां भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी.
सभी वर्गों और आयु समूह के लोग भी इस में शामिल थे. छात्रों के समूह भी इस में शामिल थे. वे काले झंडों के साथ बैनर उठाए हुए थे जिन पर नारे लिखे थे, 'संयुक्त बंगाल,' 'एकता में ही शक्ति है', 'वंदे मातरम' और 'कोई विभाजन नहीं'.
इस सभा में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि ब्रिटिश वस्तुओं का तब तक बहिष्कार किया जाए जब तक ब्रिटिश सरकार बंगाल विभाजन का प्रस्ताव वापस नहीं ले लेती.
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रिटर्न गिफ्ट
\"डिंगो, बहुत दिन से हम ने कोई अच्छी पार्टी नहीं की है. कुछ करो दोस्त,\" गोल्डी लकड़बग्घा बोला.
चांद पर जाना
होशियारपुर के जंगल में डब्बू नाम का एक शरारती भालू रहता था. वह कभीकभी शहर आता था, जहां वह चाय की दुकान पर टीवी पर समाचार या रेस्तरां में देशदुनिया के बारे में बातचीत सुनता था. इस तरह वह अधिक जान कर और होशियार हो गया. वह स्वादिष्ठ भोजन का स्वाद भी लेता था, क्योंकि बच्चे उसे देख कर खुश होते थे और अपनी थाली से उसे खाना देते थे. डब्बू उन के बीच बैठता और उन के मासूम, क 'चतुर विचारों को अपना लेता.
चाय और छिपकली
पार्थ के पापा को चाय बहुत पसंद थी और वे दिन भर कई कप चाय पीने का मजा लेते थे. पार्थ की मां चाय नहीं पीती थीं. जब भी उस के पापा चाय पीते थे, उन के चेहरे पर अलग खुशी दिखाई देती थी.
शेरा ने बुरी आदत छोड़ी
दिसंबर का महीना था और चंदनवन में ठंड का मौसम था. प्रधानमंत्री शेरा ने देखा कि उन की आलीशान मखमली रजाई गीले तहखाने में रखे जाने के कारण उस पर फफूंद जम गई है. उन्होंने अपने सहायक बेनी भालू को बुलाया और कहा, \"इस रजाई को धूप में डाल दो. उस के बाद, तुम में उसके इसे अपने पास रख सकते हो. मैं ने जंबू जिराफ को अपने लिए एक नई रजाई डिजाइन करने के लिए बुलाया है. उस की रजाइयों की बहुत डिमांड है.\"
मानस और बिल्ली का बच्चा
अर्धवार्षिक परीक्षाएं समाप्त होने के बाद मानस को घर पर बोरियत होने लगी. उस ने जिद की कि उसे अपने साथ रहने के लिए कोई पालतू जानवर चाहिए, जो उस का साथ दे.
पहाड़ी पर भूत
चंपकवन में उस साल बहुत बारिश हुई थी. चीकू खरगोश और जंपी बंदर का घर भी बाढ़ के कारण बह गया था.
जो ढूंढ़े वही पाए
अपनी ठंडी, फूस वाली झोंपड़ी से राजी बाहर आई. उस के छोटे, नन्हे पैरों को खुरदरी, धूप से तपती जमीन झुलसा रही थी. उस ने सूरज की ओर देखा, वह अभी आसमान में बहुत ऊपर नहीं था. उस की स्थिति को देखते हुए राजी अनुमान लगाया कि लगभग 10 बज रहे होंगे.
एक कुत्ता जिस का नाम डौट था
डौट की तरह दिखने वाले कुत्ते चैन्नई की सड़कों पर बहुत अधिक पाए जाते हैं. दीया कभी नहीं समझ पाई कि आखिर क्यों उस जैसे एक खास कुत्ते ने जो किसी भी अन्य सफेद और भूरे कुत्ते की तरह हीथा, उस के दिल के तारों को छू लिया था.
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10 वर्षीय मयंक ने खाने के लिए अपना टिफिन खोला ही था कि उस के खाने की खुशबू पूरी क्लास में फैल गई.
तरुण की कहानी
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