"पापा, क्या आप हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में कुछ बता सकते हैं?" पिया और पाखी ने अपने पापा से पूछा.
"पिछली बार दिल्ली में आप ने हमें राजघाट पर गांधीजी की समाधि दिखाई थी. आप ने हमें उन के बचपन की कई कहानियां सुनाई थीं. उन में से एक कहानी हमें आज भी याद है कि कैसे उन्होंने बचपन में भी नकल नहीं की थी."
पापा ने कहा, "बच्चो, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट के अलावा उत्तर प्रदेश के रामपुर में भी है. 11 फरवरी, 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर लाई गई थीं. उन की अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित किया गया था, जबकि शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रख कर जमीन में गाड़ दिया था. उसी जगह पर शानदार गांधी समाधि है. अगली छुट्टियों में हम रामपुर चलेंगे."
"यह बहुत रोमांचक होगा, पापा. हमारे टीचर ने हमें बताया कि बापू दक्षिण अफ्रीका क्यों गए थे? क्या आप हमें बता सकते हैं कि वहां उन का अनुभव कैसा रहा और फिर उन्होंने वहां इतने दिन क्यों बिताए?" पाखी ने उत्सुकतावश पूछा.
"ठीक है, चलो, आज तुम्हें वही कहानी बताता हूं. पता है, भारत को आजादी मिलने से पहले मोहनदास करमचंद गांधी एक वकील के रूप में प्रसिद्ध थे. एक बार वे अब्दुल्ला ऐंड कंपनी के एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए भारत से दक्षिण अफ्रीका तक की यात्रा पर गए थे.
"सफर लंबा था. वे मई 1893 के अंत में नेटाल बंदरगाह पर उतरे. वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि नस्लीय रंगभेद के चलते वहां मूल अफ्रीकियों तथा भारतीयों का सम्मान नहीं किया जाता है. डरबन पहुंचने के एक सप्ताह के भीतर ही वे अब्दुल्ला ऐंड कंपनी के अब्दुल्ला सेठ के साथ अदालत गए.
"जब वे अदालत में बैठे तो मजिस्ट्रेट ने उन पर उंगली उठाई और सख्ती से कहा, 'आप को अपनी पगड़ी उतारनी होगी."
"यह सुन कर गांधीजी हैरान रह गए. उन्होंने चारों ओर देखा तो पाया कि कई मुसलमान और पारसी पगड़ी पहने हुए हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें क्यों निशाना बनाया जा रहा है."
"उन्होंने उत्तर दिया, सर, मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि मुझे अपनी पगड़ी क्यों उतारनी चाहिए. मैं ऐसा करने से इनकार करता हूं."
मजिस्ट्रेट ने जोर दे कर कहा, 'इसे हटाओ.'
"इस पर गांधीजी नाराज हो कर अदालत से बाहर चले गए."
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