पहली जून, 2002 की बात है. सुबह के 4 बज रहे थे. आगरा के खंदौली थाने में तैनात कांस्टेबल के. डी. बाबू और अंकित चौधरी गश्त से लौट रहे थे. आगराजलेसर मार्ग पर गांव आबिदगढ़ के मोड़ पर सड़क किनारे पेड़ की आड़ में एक शव जल रहा था. यह देख कर दोनों कांस्टेबलों ने अपनी बाइक रोकी और वहां पहुंच गए.
वहां शव जलता दिखा तो उन्होंने तत्काल थानाप्रभारी आनंदवीर सिंह को फोन से सूचना दी. थानाप्रभारी ने भी तत्परता दिखाई. वह थाने से कंबल ले कर मौके पर पहुंच गए. तब तक दोनों कांस्टेबलों ने रेत आदि डाल कर किसी तरह आग बुझाने की कोशिश जारी रखी. थानाप्रभारी के पहुंचने के बाद कंबल डाल कर आग पूरी तरह बुझा दी गई.
जल रहा शव एक युवती का था. तब तक युवती का पेट और नीचे का ज्यादातर हिस्सा जल चुका था. चेहरे व हाथ का कुछ भाग भी झुलस गया था. उधर से गुजर रहे ग्रामीणों को जैसे ही इस की जानकारी मिली, वह भी वहां पहुंच गए.
थानाप्रभारी आनंदवीर सिंह ने अधजले शव का निरीक्षण किया. मृतका लगभग 20-22 साल की युवती थी.
थानाप्रभारी ने इस सनसनीखेज घटना की जानकारी से उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया. शव की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को मोर्चरी भिजवा दिया. यह बात पहली जून, 2022 की है.
युवती कौन थी? उस की हत्या किस ने, कहां और क्यों की? युवती के पास मोबाइल अथवा ऐसी कोई चीज भी नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सके. पुलिस का प्रयास था कि शव की शिनाख्त जल्दी हो जाए ताकि उस के हत्यारों को गिरफ्तार कर हत्या का परदाफाश किया जा सके.
Denne historien er fra September 2022-utgaven av Satyakatha.
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