सुशीला उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) के गजनेर कस्बा के रहने वाले रामकुमार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी शीला थी. सुशीला का कोई भाई नहीं था, इसलिए उन दोनों बहनों को ही घरपरिवार वाले लड़कों की तरह चाहते थे.
बेटी के शरीर पर यौवन का भार लदता देख कर उस के पिता ने उस की शादी कानपुर शहर के बर्रा भाग 8 निवासी रामबाबू उर्फ पप्पू से कर दी. पप्पू मूलरूप से औरैया जिले के गांव मटेरा का रहने वाला था. मातापिता गांव में रहते थे. उन के पास खेती की जो थोड़ीबहुत जमीन थी, उस की खेती से घर का खर्च चलाते थे.
पप्पू रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आ गया था. वह दादा नगर स्थित गत्ता बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था.
विवाह के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी के बीच शारीरिक आकर्षण ही प्रमुख रहता है. तब मन में झांकने की फुरसत नहीं होती. बस, दोनों एकदूसरे को अच्छे लगते हैं. ऐसा ही रामबाबू और सुशीला के बीच भी हुआ. लेकिन जब धीरेधीरे शारीरिक आकर्षण ठंडा पड़ा तो रामबाबू को पता चल गया कि सुशीला बहुत महत्त्वाकांक्षी किस्म की है. वह रामबाबू से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी.
प्राइवेट नौकरी करने वाला रामबाबू उस की हर फरमाइश पूरी करने में असमर्थ था. सुशीला इस बात को नहीं समझती थी बल्कि लड़ाईझगड़े पर उतर आती थी.
इसी बीच सुशीला 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी सुशीला के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.
पारिवारिक कलह से निजात पाने के लिए रामबाबू उर्फ पप्पू ने शराब का सहारा लिया. बाद में वह उस का आदी हो गया. खालिस शराब और घर की किचकिच से उस का स्वास्थ्य गिरता चला गया.
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