कानपुर शहर का नवाबगंज मोहल्ला कई मायनों में अपनी पहचान बनाए हुए है. एक तो यह पुराना कानपुर के नाम से जाना जाता है. दूसरे गंगा नदी पर बना गंगा बैराज अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है. अटल घाट पर बैठ कर लोग कलकल बहती गंगा की लहरों का लुत्फ उठाते हैं. नौका विहार का आनंद भी लेते हैं.
नवाबगंज के जागेश्वर मंदिर के ठीक सामने ओम प्रकाश सैनी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 3 बेटियां थीं. ओमप्रकाश सैनी फूलों का व्यवसाय करते थे. उन की पत्नी सरला जागेश्वर मंदिर परिसर में फूल बेचने का काम करती थी. पतिपत्नी मिल कर इतना कमा लेते थे, जिस से परिवार का खर्च मजे से चलता था. बड़ी बेटी का वह विवाह कर चुके थे.
मंझली बेटी बरखा थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की खूबसूरती में और निखार आ गया था. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे भी पढ़ना चाहती थी, लेकिन सरला ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और घरेलू काम में लगा दिया.
बरखा बनसंवर कर मंदिर परिसर स्थित फूलों की दुकान पर अपनी मम्मी के साथ बैठती तो अनेक युवकों की निगाहें उसे घूरतीं. चंचलचपल बरखा किसी को अपने पास नहीं फटकने देती थी.
बरखा के जवान होने पर वह उस के लिए उचित लड़के की तलाश में जुट गए. लंबी भागदौड़ के बाद उन की तलाश कृष्णकांत पर जा कर खत्म हुई.
कृष्णकांत के पापा रामकुमार सैनी कानपुर शहर के यशोदा नगर मोहल्ले में रहते थे. सैनिक चौराहे पर उन का निजी मकान था. वैसे वह मूल निवासी सकरापुर (बिधनू) के थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान और कुछ खेती की जमीन है. रामकुमार के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा एक बेटी शिखा तथा बेटा कृष्णकांत था. बेटी की वह शादी कर चुके थे, जबकि कृष्णकांत अभी कुंवारा था. कृष्णकांत इलैक्ट्रिशियन था. वह क्षेत्र की एक दुकान पर काम करता था.
Denne historien er fra September 2023-utgaven av Satyakatha.
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