आधुनिक समाज हो या प्राचीन मान्यताओं वाला समाज, नारी में समर्पण का भाव हमेशा रहा है। आधुनिक समाज में पतिव्रता नारी अंतर्मन से वही है, जो प्राचीन समाज में थी, बस बाह्य आवरण एवं रूप जरूर बदल गया है। आज के जमाने में भी हिंदू संस्कृति से जुड़ी महिलाएं प्रतिवर्ष करवा चौथ का व्रत पूरी निष्ठा एवं पूर्ण समर्पण के भाव से रखती हैं। बदलते परिवेश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचलन ज्यादा होने पर भी स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु को लेकर सचेत रहती हैं, इसलिए वे पति की दीर्घायु की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत रखना नहीं भूलतीं।
जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी कमल अपना मूल स्वभाव नहीं छोड़ता है, उसी प्रकार भारतीय नारी भी अपनी मूल प्रवृत्ति से सदैव जुड़ी रही है। पति से उसके कितने भी गिले-शिकवे क्यों न हों, लेकिन करवा चौथ का दिन आते ही वह सब कुछ भूलकर एकाग्रचित्त मन से अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए व्रत जरूर करती है। कहने को तो करवा चौथ का त्योहार एक व्रत है, लेकिन यह नारी शक्ति और उसकी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सृष्टि के प्रारंभ में बनाए गए विधि-विधान आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि इनका पालन करने से घर-परिवार, समाज अक्षुण्ण रहता है।
समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए वैदिक संस्कृति सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। संस्कारों, व्रतों, त्योहारों और पर्वों में कोई न कोई संदेश निहित है। ये संदेश अपने आप में वैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं, जैसे करवा चौथ के दिन निर्जल व्रत और चंद्रमा की पूजा करने से चंद्रमा बलवान होता है, जिससे मानसिक सबलता की प्राप्ति होती है, मन की चंचलता दूर होती है और दांपत्य जीवन का तनाव समाप्त होता है। करवा चौथ के दिन विधि-विधान से निर्जल व्रत, चंद्रमा की प्रतीक्षा, चंद्रमा को अर्घ्य देना आदि नारी के चंचल मन को सबल बनाने का सरल साधन हैं।
करवा चौथ पर पीले रंग की चूड़ियां अवश्य पहनें। पीला रंग देवगुरु बृहस्पति से संबंधित है, जो पति सुख के साथ संतान सुख और धन-धान्य का आशीर्वाद देते हैं।
■ विधान बदल सकती है नारी
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