मेघना को गुमान था कि वे किसी के भी बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के हावभाव, उनकी आवाज अथवा बोली को परखकर उनके व्यक्तित्व के बारे में बता सकती है। वे दूसरों के सामने किसी भी व्यक्ति के चरित्र का चित्रण जैसा करती वह व्यक्ति वैसा ही निकलता है। लेकिन एक समय आया जब मेघना को अहसास हुआ कि उसने अमुक व्यक्ति को सही से पहचानने में गलती कर दी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्रण उसके स्वभाव को देखकर नहीं आस-पास से सूनी बातों के आधार पर लेती थी। इस घटना के बाद मेघना को समझ आ गया कि जरूरी नहीं कि हम पहली बार किसी व्यक्ति के बारे में जो सोचते हैं, वही सच हो।
असल में हम खुद से किसी भी नए अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व गढ़ लेते हैं। फिर उसकी अनुपस्थिति में दूसरों से उसके बारे में चर्चा करने लगते हैं, जिससे समाज में उसकी वैसी ही इमेज बन जाती है। आम बोल-चाल में पीठ पीछे की गई इन चर्चाओं या बातों को ही 'गॉसिप' कहा जाता है। यानी हमारे दिल एवं दिमाग में किसी व्यक्ति के बारे में जो कुछ चल रहा होता है, हम उसे अन्य लोगों से साझा करने लगते हैं। मगर समय-समय पर हुई रिसर्च बताती हैं कि हर दिन लोग कम से कम एक घंटे गॉसिप करते हैं। जिसमें निगेटिव गॉसिप की दर अधिक होती है।
स्वाभाविक है गप्पें मारना
Denne historien er fra May 17, 2024-utgaven av Rupayan.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra May 17, 2024-utgaven av Rupayan.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।