मेघना को गुमान था कि वे किसी के भी बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के हावभाव, उनकी आवाज अथवा बोली को परखकर उनके व्यक्तित्व के बारे में बता सकती है। वे दूसरों के सामने किसी भी व्यक्ति के चरित्र का चित्रण जैसा करती वह व्यक्ति वैसा ही निकलता है। लेकिन एक समय आया जब मेघना को अहसास हुआ कि उसने अमुक व्यक्ति को सही से पहचानने में गलती कर दी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्रण उसके स्वभाव को देखकर नहीं आस-पास से सूनी बातों के आधार पर लेती थी। इस घटना के बाद मेघना को समझ आ गया कि जरूरी नहीं कि हम पहली बार किसी व्यक्ति के बारे में जो सोचते हैं, वही सच हो।
असल में हम खुद से किसी भी नए अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व गढ़ लेते हैं। फिर उसकी अनुपस्थिति में दूसरों से उसके बारे में चर्चा करने लगते हैं, जिससे समाज में उसकी वैसी ही इमेज बन जाती है। आम बोल-चाल में पीठ पीछे की गई इन चर्चाओं या बातों को ही 'गॉसिप' कहा जाता है। यानी हमारे दिल एवं दिमाग में किसी व्यक्ति के बारे में जो कुछ चल रहा होता है, हम उसे अन्य लोगों से साझा करने लगते हैं। मगर समय-समय पर हुई रिसर्च बताती हैं कि हर दिन लोग कम से कम एक घंटे गॉसिप करते हैं। जिसमें निगेटिव गॉसिप की दर अधिक होती है।
स्वाभाविक है गप्पें मारना
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