ऋतु बदलते ही सावन और मन बदलते ही जीवन में उमंग की बहार आ जाती है और मनुष्य को जीवन का कायाकल्प करने का एक अन्य अवसर फिर से मिल जाता है, ताकि वह अपने हाथों से भाग्य का नवसृजन कर सके। यूं तो भाग्य एवं भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को बदलना कठिन है, मगर शिव आराधना से भविष्य को सुधारा अवश्य जा सकता है। धर्मशास्त्रों में भगवान शिव के विषय में कहा गया है, 'भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी', अर्थात शिव भावी को मेटने में समर्थ हैं, वे ललाट में लिखे विधाता के लेख को भी बदल सकते हैं, इसलिए सावन में शिव आराधना आवश्यक मानी गई है। सावन के महीने में शिव की आराधना अंतर्मन के दुखों को दूर करके ग्रह कष्ट एवं अन्य किसी भी प्रकार की बाधा को दूर कर जीवन में उमंग एवं शुभ तत्व की वृद्धि करती है।
■ शिव की आराधना के दिन
शिव की आराधना से मन का दुख और शरीर का कष्ट कम होने लगता है, जिससे जीवन में चमत्कारिक अनुभूति होती है। हर प्रकार के दुख एवं संताप से बचने के लिए, घर-परिवार की सुरक्षा के लिए, स्त्रियों को सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना अवश्य करनी चाहिए। भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ति करने वाले देव हैं। भगवान शिव कुंआरी कन्याओं को मनचाहा वर, विवाहिता को संतान सुख आदि प्रदान करते हैं, इसलिए शिव की आराधना करने वाला मनुष्य पृथ्वी पर हर समय सुखपूर्वक निवास करता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन मास से बेहतर कोई अन्य समय नहीं है।
■ दांपत्य जीवन के लिए
सावन के महीने में प्रतिदिन भोले शंकर भगवान को जल चढ़ाकर बेल-पत्र अर्पण करने से उनकी विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है। चातुर्मास प्रारंभ होने के बाद यह पहला माह आता है। इसमें चंद्रोदय व्यापिनी द्वितीया तिथि में अशून्य शयन का व्रत किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से पति-पत्नी का दांपत्य जीवन अक्षुण्ण अर्थात लंबी अवधि तक बना रहता है। इसका मान 22 जुलाई, सोमवार को होगा। चंद्रोदय रात्रि 7:53 बजे चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा।
■ पांच सोमवार बेहद खास
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।