लौटकर अपने बचपन को देखें!
Rupayan|August 02, 2024
बचपन की दोस्ती सबसे खास होती है और जीवन भर साथ निभाने वाली होती है। जो मिठास, अपनापन और सुरक्षा आपको इस दोस्ती में मिलती है, कभी किसी अन्य रिश्ते में नहीं मिलती। ऐसे में आपके छोटे बच्चे भी जीवन में अच्छे और सच्चे मित्र बनाएं, यह जरूरी है।
शिखा सिंह
लौटकर अपने बचपन को देखें!

श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वो दिन, जब वह नन्हे आदित्य को स्कूल छोड़कर आई थी। वह आदित्य के स्कूल का पहला दिन था। स्कूल के गेट पर उसकी आंखें आंसुओं से डबडबा रही थीं। श्रेया का दिल टूटा जा रहा था । आदित्य को छोड़ते हुए एक बार उसका मन हुआ कि बेटे को वापस ले जाए, पर तभी पीछे से आती एक नन्ही बच्ची ने लपककर आदित्य का हाथ पकड़ लिया और बोली, "चलो, हम दोनों साथ चलते हैं।" आदित्य की आंखों में एक चमक- सी आ गई और वह उस लड़की का हाथ पकड़कर श्रेया को टाटा करके क्लास में चला गया। उस नन्ही लड़की ने श्रेया के दिल को राहत दे दी थी। घर लौटकर आदित्य ने अपनी नई दोस्त की कई बातें उसे बताई। उसका मन अब स्कूल लगने लगा था।

यह छोटा-सा महत्वहीन किस्सा अगर सोचा जाए तो बहुत ही खास है। दोस्ती या मित्रता का अपना एक महत्व है। किसी भी बच्चे के संतुलित विकास में दोस्ती महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। अक्सर सुना जाता है कि बचपन की दोस्ती जीवन भर के लिए होती है। अपने रिश्ते हम स्वयं नहीं चुनते, क्योंकि हम जिस भी परिवार में जन्म लेते हैं, उससे जुड़ जाते हैं। रिश्ते पूर्व निर्धारित होते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही रिश्ता होता है, जो हम स्वयं चुनते हैं और वह है दोस्ती। पुराणों में भी सच्ची दोस्ती की ढेर सारी मिसालें मौजूद हैं, जो किसी भी रिश्ते से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई हैं, जैसे कि श्रीकृष्ण एवं सुदामा और दुर्योधन एवं कर्ण की।

Denne historien er fra August 02, 2024-utgaven av Rupayan.

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