श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वो दिन, जब वह नन्हे आदित्य को स्कूल छोड़कर आई थी। वह आदित्य के स्कूल का पहला दिन था। स्कूल के गेट पर उसकी आंखें आंसुओं से डबडबा रही थीं। श्रेया का दिल टूटा जा रहा था । आदित्य को छोड़ते हुए एक बार उसका मन हुआ कि बेटे को वापस ले जाए, पर तभी पीछे से आती एक नन्ही बच्ची ने लपककर आदित्य का हाथ पकड़ लिया और बोली, "चलो, हम दोनों साथ चलते हैं।" आदित्य की आंखों में एक चमक- सी आ गई और वह उस लड़की का हाथ पकड़कर श्रेया को टाटा करके क्लास में चला गया। उस नन्ही लड़की ने श्रेया के दिल को राहत दे दी थी। घर लौटकर आदित्य ने अपनी नई दोस्त की कई बातें उसे बताई। उसका मन अब स्कूल लगने लगा था।
यह छोटा-सा महत्वहीन किस्सा अगर सोचा जाए तो बहुत ही खास है। दोस्ती या मित्रता का अपना एक महत्व है। किसी भी बच्चे के संतुलित विकास में दोस्ती महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। अक्सर सुना जाता है कि बचपन की दोस्ती जीवन भर के लिए होती है। अपने रिश्ते हम स्वयं नहीं चुनते, क्योंकि हम जिस भी परिवार में जन्म लेते हैं, उससे जुड़ जाते हैं। रिश्ते पूर्व निर्धारित होते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही रिश्ता होता है, जो हम स्वयं चुनते हैं और वह है दोस्ती। पुराणों में भी सच्ची दोस्ती की ढेर सारी मिसालें मौजूद हैं, जो किसी भी रिश्ते से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई हैं, जैसे कि श्रीकृष्ण एवं सुदामा और दुर्योधन एवं कर्ण की।
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।