पितृ मुक्ति के लिए स्वर्ग की सीढ़ी
Rupayan|September 13, 2024
प्रयागराज को तीर्थराज माना जाता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का त्रिवेणी संगम क्षेत्र अक्षय कहलाता है। इसे पितृ मुक्ति के लिए स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है।
आशुतोष वार्ष्णेय
पितृ मुक्ति के लिए स्वर्ग की सीढ़ी

तीर्थों के राजा तीर्थराज प्रयागराज की महिमा अद्भुत है। आस्था की नगरी में प्रतिवर्ष असंख्य श्रद्धालु दूर-दराज से आकर भिन्न-भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए त्रिवेणी संगम पुण्य की डुबकी लगाकर दान-पुण्य कर्म करते हैं। जहां माघ मास में संगम स्नान का अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है, वहीं आश्विन मास पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध आदि कर्मों के निमित्त संगम क्षेत्र का महत्व सर्वाधिक है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का त्रिवेणी संगम क्षेत्र अक्षय कहलाता है। अक्षय का अभिप्राय संगम क्षेत्र में किए जाने वाले दान-पुण्य कर्म से है, जो जन्म-जन्मांतरों तक संचित होकर अक्षय पुण्य प्रदान करता है। इसलिए श्रद्धालु पितरों की मुक्ति के लिए पितरों के नाम की डुबकी भी त्रिवेणी संगम में लगाते हैं।

Denne historien er fra September 13, 2024-utgaven av Rupayan.

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