हर तिथि का अलग श्राद्धफल
Rupayan|September 13, 2024
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पं. ज्ञानदेव आचार्य
हर तिथि का अलग श्राद्धफल

विभिन्न तिथियों में श्राद्ध कर्म आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से पितृपक्ष प्रारंभ होकर आश्विन अमावस्या को समाप्त होता है। इस अवधि में मनुष्य पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने-अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनके श्राद्ध करने चाहिए। जो मनुष्य तिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। शास्त्रानुसार तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है, जो इस प्रकार है-

पूर्णिमा : जो व्यक्ति पूर्णिमा को श्राद्ध करते हैं, उनकी बुद्धि, बल, पौरुष, पुत्र-पौत्रादि धन ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और वह चिरकाल तक सुखों का उपभोग करता है।

प्रतिपदा : इस तिथि को अपने पितरों का श्राद्ध करने वाले की धन-संपत्ति अक्षुण्ण रहती है।

द्वितीया : जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध द्वितीया को करते हैं, उन्हें राजा के तुल्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

Denne historien er fra September 13, 2024-utgaven av Rupayan.

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