13 की उम्र में देखा बॉक्सर बनने का सपना
निखत जरीन, बॉक्सर, निजामाबाद, तेलंगाना
जीवन वन का अहम फैसला : मुझे बॉक्सिंग का क्रेज बचपन से ही था। छोटी उम्र में लड़कों के साथ खेलती थी। सोचती थी कि जो खेल लड़के खेलते हैं, लड़कियां क्यों नहीं खेल सकतीं? मैं पढ़ने में इतनी ज्यादा अच्छी नहीं थी, पिता को लगता था कि स्पोर्ट्स कोटा में मुझे आगे चल कर अच्छी नौकरी मिलेगी, इसीलिए उन्होंने स्पोर्ट्स में जाने को कहा। पर मैंने बॉक्सिंग को नौकरी के लिए नहीं, बल्कि खेल की तरह ही अपनाया। 13 साल की उम्र में मैंने जीवन का यह बड़ा फैसला ले लिया था कि मैं खेलूंगी और पापा ने मेरे फैसले का स्वागत किया। पर मां को मेरे चेहरे को ले कर चिंता होती थी । एक बार मुझे याद है, जब एक अनुभवी लड़के के साथ मेरा मैच था। जब खेल शुरू हुआ, मेरे कोच जोर से चिल्लाए बॉक्स ! मैं पंच लेने के लिए तैयार नहीं थी। मेरी नाक और आंख में चोट लग गयी । घर आ कर मैं चुपचाप बाथरूम में गयी और चोट को साफ किया। मम्मी ने मुझे खाने के लिए बुलाया। मैं कमरे से बाहर आयी, तो मेरे चेहरे को देख कर मम्मी घबरा गयीं। वे रो पड़ी और उन्होंने मुझे खेलने से मना करते हुए कहा, "तेरा चेहरा खराब हो गया, तो कौन तुमसे शादी करेगा?" मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि अरे अम्मी टेंशन नक्को लो, नाम हो जाएगा तो दूल्हों की लाइन लग जाएगी। उसके बाद मां भी सहज हो गयीं। अब जब भी मुझे बॉक्सिंग में चोट लगती है, तो मां कहती हैं,“आइस लगा लो, ठीक हो जाओगी।" अब तो मुझे लगता है कि मां ही मेरी कोच हैं। दरअसल, यह खेल जोखिम और जोश से भरा है और यह एक तरह से मेल डोमिनेटिंग स्पोर्ट है। इसमें लड़कियों को जाने के लिए मना किया जाता है। पर मैंने साबित कर दिया कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होतीं।
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