कौन सी घटना ने आपको महिलाओं के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया?
दरअसल, हमारे समाज में पुरुषों को बचपन से कई हक खुद-ब-खुद ही मिल जाते हैं। पर उन्हें बचपन से लैंगिक समानता और महिलाओं के हकों के बारे में बताया जाए, तो आगे चल कर वैवाहिक रिश्तों, परिवार और समाज में हिंसा नहीं होगी। भारतीय परिवारों में लड़कियों को अकसर गैरबराबरी झेलती पड़ती है। मेरे परिवार में मैं और मेरे भाई थे। इसीलिए मैंने कभी गैरबराबरी महसूस नहीं की। मैं अपनी मां से काफी प्रभावित था। मां-पिता दोनों सरकारी कर्मचारी थे। मां अच्छे पद पर रहीं, पर ऑफिस में उन्हें लैंगिक समानता काफी झेलती पड़ती थी। ये बातें मुझे झकझोर देती थीं। वहां सबसे पहले मैंने लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर गौर करना शुरू किया। उसके बाद कॉलेज के दिनों में लैंगिक समानता को ले कर मेरी सोच पुख्ता होने लगी। महिला मुद्दों पर लिखना सभी को आम बात लगती थी, लेकिन मैं इन मुद्दों पर लिखते समय दिल से जुड़ जाता था। धीरे-धीरे मैंने जेंडर इक्वैलिटी पर डॉक्यूमेंट्री बनानी शुरू की।
अपनी सोच को कैसे विस्तार दिया?
लेखकों और महिलाओं के लिए महिला मुद्दों पर लिखना और उनके हकों के बारे में बात करना काफी स्टीरियोटाइप था, पर मेरे लिए ऐसा नहीं था। मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के दिनों में महिला मुद्दों पर कई डॉक्यूमेंट्री देखी। 2-3 डॉक्यूमेंट्री भी बनायी। मेरी पहली डॉक्यूमेंट्री ऑल अबाउट आवर मदर्स थी, जो अपने दोस्त के साथ मिल कर बनायी थी। हमारी मांओं की पीढ़ी ने कैसे लैंगिक असमानता झेली, यह डॉक्यूमेंट्री इसी विषय पर आधारित है।
आप संस्थाओं में किस तरह की जेंडर ट्रेनिंग देते हैं? क्या वाकई इससे फर्क पड़ता है?
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