मिले मुझे भी अगर कोई शाम फुरसत की...
Vanitha Hindi|May 2023
भी अधिक समय खपाती हैं, जबकि पुरुष घर में केवल दो घंटे काम करते हैं। आधी से ज्यादा शहरी महिलाएं दिनभर में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पातीं, उनकी विशलिस्ट से फुरसत के पल गायब होते जा रहे हैं, जिसकी कीमत चुकानी पड़ती है उनकी शारीरिक व मानसिक सेहत को
इंदिरा राठौर
मिले मुझे भी अगर कोई शाम फुरसत की...

क्पा आपकी पत्नी रोज घर से बाहर निकलती हैं? मैंने यह सवाल पुरुष साथियों, सहकर्मियों और संबंधियों से पूछा। ये वे लोग थे, जिनकी पत्नियां या तो घर में रह कर कोई व्यवसाय कर रही हैं, या फिर पूरी तरह परिवार की देखभाल कर रही हैं। ज्यादातर पुरुषों का जवाब ना में था। कारण है--समय की कमी। महिलाओं के पास बाहर निकलने का वक्‍त नहीं होता और फिर उन्हें ऐसा करने के लिए ठोस वजह की जरूरत होती है। मसलन बच्चों को स्कूल बस स्टॉप तक छोड़ना या लाना, उनकी पेरेंट्स मीटिंग अटेंड करना, पास की सब्जी मार्केट तक जाना, कोई विशेष अवसर या जरूरी शॉपिंग।

इकबाल साजिद लिखते हैं--मिले मुझे भी अगर कोई शाम फुरसत की; मैं क्‍या हूं कौन हूं सोचूंगा अपने बारे में:..। अपने बारे में सोचने की फुरसत महिलाओं को मिलती कहां है कम ही महिलाएं हैं, जो नियमित वॉक, वर्कआउट, योगा या हॉबी क्लासेज के लिए समय निकालती हैं। अगर वे नौकरीपेशा नहीं हैं, तो उनका ज्यादातर वक्‍त घर-बच्चों की जिम्मेदारियों में गुजर जाता है। जबकि पुरुष अकारण भी बाहर निकलते हैं। बहुत कम घर में रहनेवाले पुरुष ऐसे हैं, जो रोज घर से बाहर ना निकलते हों।

बाहरी दुनिया से दूरी

कुछ समय पहले साइंस डाइरेक्ट की पत्रिका ट्रेवल बिहेवियर एंड सोसाइटी में प्रकाशित एक रिसर्च जेंडर गैप इन मोबिलिटी आउटसाइट होम इन अर्बन इंडिया के मुताबिक शहरी भारत की लगभग आधी महिलाएं मानती हैं कि वे पूरे दिन में एक बार भी घर के बाहर कदम नहीं निकालतीं। यह अध्ययन 20१9 के टाइम यूज सर्वे टीयूएस) के नतीजों पर आधारित है। इसमें कहा गया कि सामान्य दिनों में आधी से भी कम महिलाएं घर से बाहर निकल पाती हैं। इसके विपरीत 87 फीसदी पुरुष दिन में कम से कम एक बार बाहर निकलते हैं। स्कूल-कॉलेज या नौकरी के अलावा महिलाएं कम ही बाहर निकल पाती हैं। नौकरीपेशा महिलाओं की स्थिति भी अलग नहीं है। वे नौकरी के लिए घर से निकलने और फिर लौटने के अलावा कुछ और नहीं कर पातीं। अब जरा सोचें कि बहुत सी महिलाएं ना तो स्कूल-कॉलेज जाती

Denne historien er fra May 2023-utgaven av Vanitha Hindi.

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