कार्तिक का पूरा महीना भारत में तमाम मान्यताओं में खासी अहमियत रखता है। कार्तिक अमावस्या को तो दीपावली या दीवाली का त्योहार होता ही है, लेकिन कार्तिक महीने की पूर्णिमा की भी अपनी बहुत ज्यादा अहमियत है। यह कार्तिक माह का आखिरी दिन होता है। यह साल के उन कुछ चुनिंदा दिनों में से एक है, जिसे भारत में कमोबेश सभी इलाकों में किसी ना किसी रूप में मनाया जाता है। इसलिए यह देश की सांस्कृतिक विरासत को समझनेवाला दिन है और घुमक्कड़ी के शौकीनों के लिए इन उत्सवों को देखने का दिन भी।
मजेदार बात यह है कि कार्तिक अमावस्या की ही तरह कार्तिक पूर्णिमा का भी संबंध रोशनी व दीपक से है। कार्तिक अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है, तो कार्तिक पूर्णिमा को देव-दीपावली मनायी जाती है। अब देव-दीपावली मनाने के पीछे शास्त्रों-ग्रंथों के हवाले से कई पौराणिक कथाएं, लोक कथाएं, मिथक व मान्यताएं प्रचलन में हैं, हम उनके विस्तार में तो नहीं जाएंगे। लेकिन नाम से स्पष्ट है कि इसकी परंपरा देवताओं के लिए या फिर खुद देवताओं द्वारा दीवाली मनाए जाने से है। गंगा किनारे बसी काशी नगरी यानी वाराणसी में इस देव-दीपावली को मनाए जाने की परंपरा रही है, जिसमें गंगा-आरती के बाद शहर में नदी के तट पर दीप जलाए जाते हैं और नदी में भी प्रवाहित किए जाते हैं।
आप किसी भी खयाल या विचार से जुड़े हों, लेकिन गहराती शाम में पूनम के चांद की छटा के बीच घाट पर और नदियों में तैरते दीयों का नजारा आपको आकर्षित किए बिना नहीं रहेगा। अब तो गंगा के किनारे बसे बाकी प्राचीन शहरों में भी देव-दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हो गयी है। कार्तिक पूर्णिमा पर देश की प्राचीन नदियों में स्नान की परंपरा है, इसलिए इस दिन को गंगा स्नान के नाम से भी पुकारते हैं। दिन में गंगा स्नान और शाम को दीपदान इस दिन को मनाने की परंपरा से जुड़ गए हैं।
साउथ में कार्तिगई दीपम
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