देश की राष्ट्रपति से सम्मान मिलना गर्व की बात है। रीतिका को लगता है कि इससे समाज एवं बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गयी है। एक शिक्षक के नाते वे हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करती हैं। आखिरकार शिक्षक बनने का ही निर्णय क्यों लिया, इस पर रीतिका बेबाकी से बताती हैं, "सच कहूं तो मैं जब महज 19 वर्ष की थी, तब ही शिक्षक बनने का निर्णय ले लिया था। उस दिशा में चलते हुए मैंने पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएड की परीक्षा उत्तीर्ण की, जो काफी मुश्किल मानी जाती है। जल्द ही मेरी उस स्कूल (सेंट मार्क्स सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल) में नौकरी लग गयी, जहां मैं विगत 23 वर्षों से लगातार काम कर रही हूं। यहां मुझे आगे बढ़ने के अवसर मिलते रहे। मैंने टीजीटी (साइंस) टीचर के रूप में शुरुआत की थी। गणित में मास्टर्स करने के बाद पीजीटी में प्रोन्नति हुई। आज स्कूल की वाइस प्रिंसिपल हूं।" रितिका की मानें, तो उन्होंने अपने स्टूडेंट्स, साथी शिक्षकों, मेंटर्स सबसे कुछ ना कुछ सीखा है, अर्जित किया है। उन्हें नए प्रयोग करने के मौके मिले हैं, जिससे खुद के साथ बच्चों एवं स्कूल का भी विकास हुआ है। इसलिए ये यात्रा बेहद खूबसूरत रही है।
रचनात्मक पेशा है शिक्षण
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