सोशल मीडिया कभी सोता नहीं है। जागता है और जगाए रखता है। आप उसके अभ्यस्त हो गए हैं। जिसका नतीजा है कि आपकी भावनाएं थक-टूट चुकी हैं, गुस्से का हाल यह है कि आप फट पड़ने का मौका तलाशते रहते हैं। आलस सिर पर सवार है, क्योंकि आप पड़े-पड़े या बैठे-बैठे कभी ईमेल, फेसबुक, कभी वॉट्सअप, कभी द्वीट-द्वीट खेलते रहते हैं। रुकिए आप नहीं खेल रहे, सोशल मीडिया आपसे खेल रहा है। आप अनजाने में उसके हाथ की कठपुतली बन गए हैं। आपको लगता है कि आप उसे नचा रहे हैं, पर सच तो यह है कि नाच आप रहे हैं। मेल, फेसबुक आदि बार-बार चेक करने और उनका जवाब देने का अपना लालच होता है। लिहाजा ऑफिस छोड़ने के बाद आप इन सब में जुट जाते हैं।
ना घर, ना परिवार, ना माता और ना पिता। सबकी जगह सोशल मीडिया हथिया चुका है। लोग रास्ते चलते और घर पहुंच कर कॉल्स, ईमेल्स, वॉट्सअप, एक्स पर जवाब देने में जुटे रहते हैं। लेकिन क्या खुद को थका हुआ और ओवरलोड महसूस नहीं करते? उनको ऐसा नहीं लगता कि इस तरह के दबावों से वे कुछ देर मुक्त रहें? लेकिन तभी फेसबुक पर उनका फोटो लाइक किया जाता है और वे खुश हो जाते हैं, एक्स का एक कमेंट बहुत बड़ा महसूस कराता है, तो इंस्टाग्राम में डाले गए फोटो किया गया कमेंट लाल-पीला करते और अप्रिय वाट्सअप चैट मूड खराब कर देती है। ये नए-नए तरह के स्ट्रेस हैं, जो सबको परेशान करते हैं। कई बार मन होता है कि स्मार्टफोन को उठा कर फेंक दें, पर इस विचार से ही आप कांप जाते हैं कि उसके बिना आप जिएंगे कैसे? कहने को टेक्नोलॉजी जिंदगी को आसान बना रही है, मगर इसने बहुत सारे नए स्ट्रेस भी पैदा कर दिए हैं। मसलन मेरे फोटो पर कितने लाइक आए, चलो अब एक सेल्फी लेते हैं, आखिर इंस्ट्राग्राम में यह आदमी पीछे ही पड़ गया है, हर बात पर राय देता है। कब से इसने मेरे पीछा शुरू किया। इन सारी बातों की वजह से स्ट्रेस इतना बढ़ता है कि मनोवैज्ञानिक मदद लेने की जरूरत पड़ जाती है।
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