कुछ साल पहले दिल्ली के एक कॉलेज में महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में लड़कियों से अनौपचारिक बातचीत हो रही थी। ज्यादातर का मानना था कि उन्हें अनजान जगह अकेले जाने में हिचक होती है, शाम का धुंधलका छाते ही दिल धड़कने लगता है, सुनसान जगहों पर चलते हुए डर लगता है...। घर में हों या सड़क पर, यात्रा में हों या दफ्तर में, सार्वजनिक जगहों पर हों या फिर दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ... अनहोनी की आशंका हर वक्त साथ चलती है...। जब तक घर ना पहुंच जाएं, पेरेंट्स भी परेशान रहते हैं, शाम 7-8 बजे के बाद तो वे लगातार फोन करके पूछना शुरू कर देते हैं कि कितनी देर और!
देश की राजधानी दिल्ली का यह हाल है तो छोटे शहरों की स्थिति समझी जा सकती है। किसी भी सभ्य समाज का यह दुर्भाग्य ही होगा कि वहां लड़कियां खुद को सुरक्षित नहीं समझतीं। आए दिन ईव टीजिंग, स्नैचिंग, रेप जैसी खबरें आती ही रहती हैं। ऐसे में खुद को हर पल चौकन्ना और सुरक्षित रखना होता है। कहते हैं, लड़कियों की आंखें सिर्फ सामने ही नहीं, पीछे भी देखती हैं, क्योंकि उन्हें हर वक्त सतर्क रहने की जरूरत पड़ती है।
जागरूक बनें
लड़कियों के लिए जरूरी है कि वे हर समय जागरूक रहें और आसपास के माहौल पर नजर रखें। कुछ असामान्य लगे तो व्यस्त जगह पर रुक कर स्थिति को समझने की कोशिश करें और अपने इंट्यूशन को पहचानें। अगर कोई पीछा कर रहा हो, गलत ढंग से छूने की कोशिश कर रहा हो तो चुप ना रहें, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की चेष्टा करें। सड़क पर फोन का इस्तेमाल भरसक ना करें, ना सिर झुका कर चलें। चाल तेज हो और आपके चेहरे से आत्मविश्वास झलके। लोगों के साथ आई कॉन्टैक्ट करें। किसी को यह ना लगे कि आप चुप रहेंगी या सहन कर लेंगी। सेल्फ डिफेंस में प्रेजेंस ऑफ माइंड सबसे मजबूत हथियार है, इसलिए शांत रहें और स्थिति के अनुसार सुरक्षित रास्ते का चयन करें।
5 सेफ्टी स्टेप्स
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