बहुत से किसान गेहूं की करनाल बंट जैसी बीमारी को अहमियत नहीं देते, लेकिन इस बीमारी ने गेहूं की पैदावार घटाई है. साथ ही, दूसरे देशों को भेजने वाले गेहूं ने भी समस्याएं खड़ी कर दी हैं. फसलों में लगने वाली बीमारियां किसानों के लिए सिरदर्द और खेती के वैज्ञानिकों के लिए चुनौती साबित हो रही हैं.
किसान दिनरात मेहनत कर के फसलें उगाते हैं, अपना खूनपसीना बहाते हैं, पूरी लागत लगाते हैं, लेकिन देखभाल व चौकसी के बावजूद भी कई बार फसल में कोई न कोई बीमारी लग जाती है. ऐसे में किसानों का जोखिम व उन की परेशानी बढ़ जाती है. अगर रोकथाम न हो, तो फसल चौपट हो जाती है. इस से किसानों को काफी नुकसान होता है.
क्या है पौधों की बीमारी
सिर्फ जानवर और इनसान ही नहीं, पौधे भी बीमार होते रहते हैं. आमतौर पर पौधे जमीन से पानी, खनिज और सूरज से रोशनी वगैरह ले कर सभी हिस्सों को खुराक भेजते हैं, लेकिन कुछ पौधे जब यह काम ठीक से नहीं कर पाते, तो उन में बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. ऐसे पौधे अपनी ही किस्म के दूसरे पौधों से अलगथलग दिखने लगते हैं.
बीमारी से पौधों के साइज, बनावट व बढ़त पर बुरा असर पड़ता है. उपज घट जाती है. उस की क्वालिटी खराब हो जाती है या उपज बिलकुल नहीं होती. लगातार कीड़ेमार दवाओं के जहरीले असर, कैमिकल खाद, आंधीतूफान, पौलीथिन की भरमार और पानी के कटाव, बहाव वगैरह से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी आती है. खेती की उपजाऊ ताकत घटने लगती है. खड़ी फसल में तमाम तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं.
कुछ बीमारियां असंक्रामक यानी छूत की नहीं होतीं. जमीन में जरूरत से ज्यादा नमी की कमी या बहुत इजाफा, सूरज की गरमी या बहुत सर्दी वगैरह से भी पौधों के कुदरती मिजाज बदलते हैं. बीज, जमीन और हवा के जरीए भी पौधे बीमार होते हैं.
फफूंदी, जीवाणु, काई, वायरस, निमेटोड यानी सूत्रकृमि जैसे जानदार सूक्ष्म परजीवी पौधों में बाहर या अंदर से उन की खुराक चट करने लगते हैं. सूक्ष्मजीवों के इस हमले से पौधों की बढ़वार घट जाती है, इसलिए वे कमजोर और बीमार हो जाते हैं. कारगर रोकथाम के लिए बीमारी की सही पहचान करना लाजिम है, वरना बीमारी महामारी में भी बदल सकती है.
रोकथाम है जरूरी
Denne historien er fra October-I 2022-utgaven av Farm and Food.
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अगस्त महीने के खेती के काम
अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.
पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.
टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.
तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पालक की उन्नत खेती
पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.
कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.
खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.
बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.