किसी भी स्थान विशेष की सुंदरता बढ़ाने के लिए उस स्थान पर सुंदर फूल एवं पत्तियों वाले वृक्षों का लगाना आवश्यक होता है. बिना वृक्षों के किसी भी भूदृश्य को पूर्ण कहना न्यायोचित नहीं माना जाता है.
हमारे देश में प्राचीन समय से स्थान की सुंदरता को बढ़ाने के लिए शोभादार वृक्षों का प्रयोग किया जाता रहा है. प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है. वृक्षों में मुख्य रूप से दो प्रकार के वृक्ष अधिक प्रयोग किए जा रहे हैं जैसे: पुष्पीय वृक्ष और पर्णीय वृक्ष.
पुष्पीय वृक्षों में मुख्य रूप से अमलताश, गुलमोहर, नीली गुलमोहर, पीली गुलमोहर, जकरांडा, गुलाबी केसिया इत्यादि पौधों का रोपण किया जाता है.
वहीं दूसरी ओर पर्णीय पौधों में मुख्यतया अशोक, मौलश्री, पुतरंजिवा, पाकड़ नीम, गद, बालखीरा आदि वृक्ष लगाए जाते हैं. कुछ ऐसे वृक्ष होते हैं, जिन के फूल तो सुंदर होते ही हैं, साथ में पत्तियां भी अच्छी दिखती हैं. इन को भी पार्क आदि में लगाना अच्छा माना जाता है. इन में मुख्य हैं सीता अशोक, प्राइड औफ इंडिया, सिल्वर ओक, बोतल बुस आदि.
उपरोक्त के अलावा वृक्षों को उन के आकार एवं उम्र के आधार पर 3 भागों में बांटा जाता है. बड़े आकार के वृक्ष जैसे बरगद, पाकड़, नीम, अर्जुन इत्यादि दूसरे प्रकार के वे वृक्ष आते हैं, जिन का आकार मध्य होता है. जैसे पुतरंजिवा, अशोक, बालखीरा, मौलश्री, चीड़, अमलतास आदि तीसरे प्रकार के वृक्ष वह हैं, जो आकार में छोटे होते हैं. इन में मुख्यतया सीता अशोक, बोतल ब्रुस, कचनार, प्राइड औफ इंडिया आदि आते हैं.
वृक्षों के पौधे तैयार करना
ज्यादातर शोभादार वृक्षों के पौधों का वर्धन बीज द्वारा किया जाता है. सभी पौधों के बीज का आकार अलगअलग होने के साथसाथ उन की ऊपरी सतह भी पतली एवं मोटी होती है. मुख्य रूप से पतले छिलके वाले बीजों को 6-8 घंटे पानी में भिगोने के बाद सीधे ही मिट्टी से भरी थैलियों अथवा क्यारियों में बो दिया जाता है, परंतु कुछ बीजों की ऊपरी सतह अत्यधिक कठोर होती है, उन को बोने से पहले उपचारित किया जाता है.
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