![आम की फसल सुरक्षा आम की फसल सुरक्षा](https://cdn.magzter.com/1400326928/1679815090/articles/0BBJWlXFK1679900070022/1679900687668.jpg)
आम से अच्छी पैदावार लेने के लिए फसल की सुरक्षा भी जरूरी है. कई बार आम की फसल में अनेक कीट व रोग लग जाते हैं, जिन से फसल उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. जरूरी है कि समय रहते कीट व रोगों को पहचान लें और उन की रोकथाम करें.
आम के प्रमुख कीट कड़ी कीट या गुजिया
इस के अर्भक भूरे रंग के होते हैं. दिसंबरजनवरी में शिशु निकलते हैं, जो पेड़ों के ऊपर धीरेधीरे रेंग कर चढ़ते हैं.
शिशु कीट और प्रौढ़ मादा कोमल शाखाओं व वृंतों से बौर वाली टहनियों पर भारी मात्रा में जमा हो जाते हैं और उन का रस चूसते हैं. परिणामस्वरूप फूल सूख कर झड़ कर गिर जाते हैं और उन के फलों की संख्या कम हो जाती है. उन के डंठल इतने कमजोर हो जाते हैं कि हवा के हलके झोंकों में ही वे जमीन पर गिर जाते हैं तथा उन के द्वारा उत्सर्जित चिपचिपे पदार्थ का विसर्जन करते हैं, जिस पर काली फफूंद उग जाती है. अधिक प्रकोप में फल गिर जाते हैं.
रोकथाम
• इस की रोकथाम के लिए मईजून माह में बाग की गहरी खुताई करनी चाहिए, ताकि अंडे ऊपर आ कर तेज धूप से नष्ट हो जाएं.
• दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक थालों की गुड़ाई करा कर बेवेरिया बैसियाना या फेनवैलेरेट 10 प्रतिशत ईसी 0.5 मिलीलिटर पानी में मिला कर मिट्टी में मिला देते हैं. क्लोरपाइरिफास चूर्ण 1.5 प्रतिशत से 250 ग्राम प्रति थाले के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए.
• दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक वृक्ष के मुख्य तने पर लगभग 1/2 मीटर की ऊंचाई पर 25-30 सैंटीमीटर 300-400 गेज की पौलीथिन शीट को पतली सुतली से बांध कर दोनों सिरों को चिकनी मिट्टी या ग्रीस से लेप देना चाहिए.
• पेड़ों की मुलायम पत्तियों, टहनियों और पुष्पक्रम पर चिपकी हुई चूर्णी बग को एल्फासाइपर मेथ्रिन 10 प्रतिशत 0.25 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी या मेटासिस्टौक्स के 0-025 प्रतिशत या रोगर के 0-04 प्रतिशत या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर घोल के छिड़काव द्वारा नष्ट किया जा सकता है.
भुनगा अथवा लस्सी कीट
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![कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/ux9Flz10R1734510733127/1734510893666.jpg)
कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
![सर्दी की फसल शलजम सर्दी की फसल शलजम](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/keTtCRzVz1734510504896/1734510672475.jpg)
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
![राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/5l2pRiF1L1734510224238/1734510493593.jpg)
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
![करें पपीते की वैज्ञानिक खेती करें पपीते की वैज्ञानिक खेती](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/9nm-J8R821734509663274/1734510212442.jpg)
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
![दिसंबर महीने के जरुरी काम दिसंबर महीने के जरुरी काम](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/VKopQw__J1734509401387/1734509559583.jpg)
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
![चने की खेती और उपज बढाने के तरीके चने की खेती और उपज बढाने के तरीके](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/yq29sH3f71734509052922/1734509396765.jpg)
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
![रोटावेटर से जुताई रोटावेटर से जुताई](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/nO9Pt9Z5S1734508918313/1734509039098.jpg)
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
![आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/HQC9NZNLs1734508730679/1734508918064.jpg)
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
![कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/n-vmLQGqA1734508349773/1734508617974.jpg)
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
![गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1930586/7r2hV2rUa1734507908006/1734508326211.jpg)
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.