भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटा अनाज हमारे भोजन का हिस्सा था. तकरीबन 5-6 दशक पहले कुछ फसलें नाममात्र थीं. उदाहरण के लिए, धान और कोदो की एकसाथ बोई गई फसल को धनकोडाई कहा जाता था. इसी प्रकार गेहूं और जौ के साथ बोई गई फसल को गोजाई कहा जाता था.
ये फसलें अपनी परंपरा में इस कदर समाई थीं कि उन दिनों गांव में कुछ लोग गोजाई और कोडाई के नाम से भी मिलते थे. खाद्य क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए और कुपोषण पर काबू पाने के लिए भारत में 60 के दशक में हरित क्रांति हुई और उस के परिणामस्वरूप चावल और गेहूं की अधिक पैदावार वाली किस्मों को उगाया जाना शुरू किया गया और धीरेधीरे हम मोटे अनाज को भूल गए.
वर्ष 1960 और 2015 के बीच, गेहूं का उत्पादन 3 गुना से भी अधिक हो गया और चावल के उत्पादन में 800 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन इस दौरान मोटे अनाजों का उत्पादन कम ही बना रहा. जिस अनाज को हम 6,500 साल से खा रहे थे, उस से हम ने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है और बाजार में इन्हें सुपर फूड का दर्जा दिया गया है.
वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों में भारत का स्थान देखें, तो उन के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 20 फीसदी के करीब है.
एशिया के लिहाज से यह हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है. इस में बाजरा और ज्वार हमारी मुख्य फसल हैं। खासकर बाजरे के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है। और उत्तर प्रदेश भारत में पहले नंबर पर है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष को सफल बनाने में भारत, खासकर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. राज्य सरकार भी इस के लिए पूरी तरह से तैयार है. बाजरे को लोकप्रिय बनाने की पूरी योजना पहले ही तैयार की जा चुकी है.
मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए ही सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया गया है. इस के अलावा उपज की बिक्री के लिए एक टिकाऊ बाजार मुहैया करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शामिल किया है.
अब इस के लिए गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता पर ध्यान दिया जा रहा है. सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है. इसी अवधि के दौरान मोटे अनाज की 150 से अधिक उन्नत किस्में, जो अधिक उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी हैं, को भी लौंच किया गया है.
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अगस्त महीने के खेती के काम
अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.
पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.
टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.
तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पालक की उन्नत खेती
पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.
कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.
खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.
बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.