गन्ने की खेती में जैव उर्वरक का उपयोग
Farm and Food|May First 2023
गन्ना बहुवर्षीय फसल है, जोकि भारत की महत्त्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है. भारत विश्व में गन्ना उत्पादन में क्षेत्रफल व उत्पादन की दृष्टि से दूसरा स्थान रखता है.
डा. राकेश सिंह सेंगर और वर्षा रानी
गन्ने की खेती में जैव उर्वरक का उपयोग

गन्ने की खेती व प्रसंस्करण द्वारा जहां करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर देश को हर साल 50,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का का राजस्व प्राप्त होता है.

यह देखा गया है कि गन्ने की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ है. एक अनुमान के अनुसार, एक टन मिल योग्य गन्ना प्राप्त करने में प्रति हेक्टेयर खेत से 2.0 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.5 किलोग्राम फास्फोरस, 2.8 किलोग्राम पोटाश, 0.3 किलोग्राम गंधक और 0.03 किलोग्राम लौह तत्त्व का अवशोषण किया जाता है. इस के चलते मिट्टी की उर्वरकता में उपयोगी तत्त्वों का दिनप्रतिदिन नुकसान होता जा रहा है.

वैज्ञानिक अध्ययनों के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि गन्ने की खेती में जैविक खादों के प्रयोग से जहां मिट्टी की उर्वराशक्ति बरकरार रहती है, वहीं कई पेड़ी फसल भी बिना उत्पादकता घटे प्राप्त की जा सकती है. जैविक खादों के प्रयोग से सभी आवश्यक तत्त्व पौधों को आसानी से प्राप्त हो जाते हैं.

गन्ने में मुख्यतया प्रयोग होने वाली जैविक खादें, गोबर की खाद, मैली की खाद व जैव उर्वरक एसीटोबैक्टर का मिश्रण शामिल है. अध्ययनों से पता चला है कि जैविक खादों के प्रयोग से गन्ने में बहुपेड़ी खेती उपज में बिना गिरावट के सफलतापूर्वक की जा सकती है. इस में देखा गया है कि मिट्टी की भौतिक व रासायनिक संरचना में भी गिरावट नहीं आती है.

एक अन्य अध्ययन के अनुसार पता चला है कि रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कार्बनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी में एंजाइमों की क्रियाशीलता में लगभग दो गुना तक वुद्धि पाई गई है और उत्पादन भी बढ़ा है.

अतः अब समय आ गया है कि गन्ने की खेती में मिट्टी व फसल दोनों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जैविक खादों का प्रयोग कर के अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.

गन्ने की खेती में जैविक खादों का प्रयोग अकेले या जैव उर्वरकों के साथ बावक फसल की बोआई से पहले एवं प्रत्येक पेड़ी फसल को प्रारंभ करते समय करें. इस के लिए कार्बनिक खादों को मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर सिंचाई कर देते हैं, ताकि पौधों को पोषक तत्त्व जल्दी से जल्दी प्राप्त हो सकें.

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